Wednesday, March 1, 2017

उम्र सम्बन्धी प्रश्न



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राजेश ठाकुर

विश्व गणित दिवस



विश्व गणित दिवस

यथा शिखा मयूराणां , नागानां मणयो यथा ।
तद् वेदांगशास्त्राणां , गणितं मूर्ध्नि वर्तते ॥

अर्थात जिस प्रकार मोरों में शिखा और नागों में मणि का स्थान सबसे उपर है, वैसे ही सभी वेदांग और शास्त्रों मे गणित का स्थान सबसे उपर है ।
गणित की इसी विशालता को और इसे और मनोरंजन बनाने हेतु राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अनेक कार्यक्रम का आयोजन किया जाता है और ऐसे ही एक कार्यक्रम की शुरआत 2007 में 14 मार्च को हुई और पूरा विश्व ऑनलाइन होने वाली इस गणित प्रतियोगिता का दीवाना बन गया. गणित के इस कार्यक्रम को विश्व गणित दिवस के रूप में मनाया गया. 14 मार्च को गणित दिवस मनाने के पीछे शायद इसे लिखने के अमेरिकी ढंग 3/14 छिपा है जो पाई का एक मान है जिससे सभी परिचित हैं –पाई



पाई का नाम सुनते ही दिलोदिमाग में अपने भारतीय होने का एहसास चरम पर पहुँच जाता है क्योंकि भारतीय गणित के पुरोधा आर्यभट ने ही पहली बार पाई का दशमलव के चार अंक तक सही मान पुरे विश्व को बताया था.

चतुराधिकं शतमष्टगुणं द्वाषष्टिस्तथा सहस्त्राणाम्।
अयुतद्वयस्य विष्कम्भस्य आसन्नौ वृत्तपरिणाहः॥

अर्थात 62832 परिधि वाले वृत्त का व्यास 20000 होगा.
π = परिधि / व्यास = 62832/ 20000 = 3.1416


यही नहीं कृष्ण की इस भक्ति पूर्ण स्तुति का कत्यापादी विधि से अनुवाद करने पर पाई का मान दशमलव के पश्चात् 31 अंको तक निकाला जा सकता है.

π =3.1415926535897932384626433832792
यह हमारे लिए गर्व की बात है कि भारत के ही महान गणितीय प्रतिभाशाली श्रीनिवास रामानुजन ने पाई के मान निकालने के लिए जिस श्रृंखला का प्रयोग किया आज वही श्रेणी सुपर कंप्यूटर का पाई के मान निकालने
में सहायता मिली



जिस तरह पाई अनंत अंक तक चलने वाली संख्या है उसी तरह गणित के क्षेत्र में भारतीयों का योगदान भी अनंत है. आर्यभट ने पूरी धरती की परिधि , गोले का आयतन , क्षेत्रफल निकालने की विधि का प्रतिपादन किया तथा संख्या को अक्षरों – स्वर और व्यंजनों की सहायता से लिखने की विधि की भी खोज की. ब्रह्मगुप्त ने शून्य के सभी संक्रियाओं पर विवेचना की और साथ ही भास्कराचार्य ने अपनी पुस्तक लीलावती के जरिये गणित के क्षेत्र में अपना बहुमूल्य योगदान दिया.

वैदिक काल में ऋषियों ने हवन कुंड को अलग- अलग ज्यामिति आकृति देकर तथाकथित पाइथागोरस प्रमेय को बहुत पहले ही खोजने में सफलता पा ली थी. वेदों में भी दाशमिक पद्धति, संख्या के बढ़ते क्रम, बड़ी- बड़ी संख्या को लिखने के तरीके के बारे में व्यापक चर्चा की गयी है, शुल्व सूत्र नामक प्राचीन ग्रन्थ में अपरिमेय संख्या और संख्या के अनंत की व्यापकता पर विवेचना देखने को मिलती है.

महान व्याकरणविद आचार्य पिंगल ने तो ईशा पूर्व 200 में अपनी पुस्तक छंदशास्त्र में शून्य का उल्लेख किया है और आज पुरे विश्व में जो संख्या लिखने की परिपाटी है वह सब पूर्ण रूपेण भारतीय है. शून्य, दशमलव, की खोज ही नही बरन इसके संकेत का उल्लेख भी महाराजा जयवर्धन द्वितीय के शासन में मिली 876 में मिली शिलालेख में मिलता है जहाँ से शून्य की वर्तमान संकेत लिया गया है. अंकगणित के उपर श्रीधर आचार्य, महावीर, ब्रह्मगुप्त, भास्कर , आचार्य हेमचन्द्र ने अपार काम किया जिसे रामानुजन ने भी आगे बढाया और पार्टीशन नंबर, मोक थीटा फंक्शन जैसे कई शोध द्वारा भारत का नाम रौशन किया. इसी कड़ी में अभी 2014 में मंजुल भार्गव जो भारतीय मूल के अमेरिकी गणितविद है को गणित का नोबल पुरस्कार कहे जाने वाले फील्ड मेडल से सम्मानित किया गया जो भारत की गणितीय परंपरा की गहराई को बताता है. विश्व को गणित की प्रत्येक विधा में योगदान देने के लिए आज भी विश्व भारत का ऋणी है और विश्व गणित दिवस के दिन हम विश्व को यही सन्देश दे और अपनी गणित की प्रतिभा से पुरे विश्व को अपना लोहा मनवायें यही संकल्प लें


Dr Rajesh Kumar Thakur



गणित और रामायण

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