Tuesday, July 15, 2025

बारिश में अधिक कौन भीगेगा

 

क्या आप जानते हैं –

अली नेसिन को टर्की में गणित ग्राम की स्थापना और गणित के प्रचार -प्रसार के लिए 2018 में लीलावती पुरस्कार प्रदान किया गया. हाँ वही लीलावती – महान गणितज्ञ भास्कराचार्य की सुपुत्री. लीलावती पुरस्कार प्रत्येक 4 वर्ष में एक बार गणित को लोकप्रिय बनाने के लिए गणितज्ञों के अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन में  दिया जाता है . अली नेसिन कहते हैं – गणित सही उत्तर खोजने की कला नहीं बल्कि यह समझने की कला है की उत्तर सही क्यों हैं . चलिए उनके इसी कथन को साक्षी मानकर हम भी ऐसा ही कुछ सत्य खोजने का प्रयास करें. मानसून ने देश में दस्तक दे दी है और बारिश में भींगना किसे अच्छा नहीं लगता ? शायद आप भी अपने बचपन को याद कर रहे होंगे. चलिए एक प्रश्न से शुरआत करें – यदि बारिश में एक एक व्यक्ति दौड़ रहा हो और एक व्यक्ति चल रहा हो तो कौन अधिक गीला होगा ? सुनने में यह सवाल अटपटा लगता है . मैंने यह सवाल कई लोगों से पूछा. मुम्बई से नितिना शुक्ला जी ने जबाब दिया – अगर दोनों के हाथ में छाता हो या दोनों फ्लाई ओवर के नीचे चल रहे हों या रेनकोट पहने हों तो कोई भी गीला नहीं होगा. यह जबाब भी बड़ा खुबसूरत है आखिर गणित हर संभावनाओं पर सोचने की आजादी जो देता है. खैर इस प्रश्न के उत्तर के लिए कई अन्य संभावनाओं पर काम करना पड़ेगा जैसे – उस व्यक्ति को भींगते हुए कितनी दुरी तक जाना है यह तय करेगा की व्यक्ति कितनी देर बारिश में रहेगा. मान लीजिये आप और आपके मित्र दफ्तर से घर जाते हुए बारिश में फंस गये और 100 मीटर दुरी पर एक मकान आपको दिख गया जहाँ जाकर आप बारिश में भींगने से बच सकते हैं. अब अगर पैदल जाने वाले की चाल 2 मी/से तथा दौड़ने वाले की चाल 10 मी/से हो तो पैदल जाने वाले को 100/2 = 50 सेकेण्ड लगेगा जबकि उसी दुरी को दौड़ने वाला 100/10 = 10 सेकेण्ड में तय करेगा. इसका मतलब ये हुआ की दोनों के भींगने का समय अलग है तो निर्णय कैसे होगा. इसका जबाब ये है की दौड़ने वाले को भी 50 सेकेण्ड भींगने पर ही इस प्रश्न का उत्तर सही तरीके से दिया जा सकता है. अर्थात अगर पैदल 100 मीटर चल रहा है तो दौड़ने वाले को 500 मीटर चलना पड़ेगा. 2012 में ट्रेवर वालिस और थॉमस पीटरसन ने इसी प्रश्न का उत्तर ढूंढने की कोशिश की और इसके लिए उन्होंने विशेष प्रकार  के रुई के फार वाले कपडे सिलवाए और दोनों ने समान दुरी भाग लेकर यह पाया की दौड़ने वाले के कपडे में 40% अधिक गीले हो गये. इस आधार पर यह निष्कर्ष निकाला जाना की दौड़ने वाला अधिक भिगेगा गलत होगा  क्योंकि यहाँ कई तथ्य हमने नजरअंदाज कर दिए मसलन – बारिश  की बुँदे उर्ध्वाधर हैं या किसी कोण के साथ बारिश की बुँदे गिर रही हैं. इटालियन वैज्ञानिक फ्रांको बोची (Franco Bocci) ने मनुष्य की जगह घनाभ और बेलन पर यही प्रयोग किया और पाया की वस्तु के आकार , बारिश के दौरान हवा की गति और दिशा भी एक कारक हो सकते हैं.  1976 में इसी प्रश्न का उत्तर खोजने का एक प्रयास हार्वर्ड के गणितज्ञ डेविड बेल ने किया और पाया की अगर वरिश की बुँदे उर्ध्वाधर (vertical) गिर रहीं हों तो आपको दौड़ना चाहिए क्योंकि आप जितना तेज दौड़ेंगे उतना कम गीला होंगे . यदि बारिश के साथ हवा आपके पीछे से बह रही है तो हवा की गति से दौड़ने पर आप कम गीले होंगे . चूँकि दौड़ने पर आप हवा को चीरते हुए आगे बढ़ते हैं इसलिए आपका अगला हिस्सा भी गीला हो रहा है अतः बारिश में आपका गीला होना सिर्फ इस बात पर निर्भर करता है की आप अपने आश्रय तक कितनी देर में पहुंचते है और उस समय हवा की गति , वर्षा की गति , बारिश की बूंदों का आकार और आपकी गति कितनी है.  यदि आप चलते हैं तो बारिश की बुँदे आयताकार रूप से आप के ऊपर गिरती हैं और दौड़ने से यह आयत सिकुड़ जाता है और आप कम भींगते हैं.






डॉ राजेश कुमार ठाकुर

 

गणित के अनमोल रत्नों की कहानी

 

क्या आप जानते हैं ?

गणित विषय कितना रोचक है इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है विश्व में कई ऐसे महान गणितज्ञ पैदा हुए जिन्होंने कभी गणित की पढाई आरंभिक दौर में या तो की नहीं या जिन्होंने एक दुसरे सफल पेशे को छोड़ गणित को अपना लिया. फरमा एक सफल वकील थे, गैलिलियो एक डॉक्टर थे . एलन टूरिंग एक धावक थे. अगर बात करें भारतीय गणितज्ञ की तो श्रीनिवास रामानुजन ने गणित में कोई उच्च शिक्षा नहीं ली और ग्यारहवीं में तीन लगातार बाल असफल हुए व्यक्ति का गणित के फलक पर स्थापित हो जाना गणित की विशालता को दिखाता है. भारतीय गणितज्ञ हरीश चन्द्र ने अपनी परा- स्नातक (मास्टर्स) तक की पढाई भौतिकी विज्ञान में की , आरंभिक शोध और लेखन का काम भी भौतिकी में किया परन्तु बाद में ये प्रिन्सटन यूनिवर्सिटी में गणित के प्रोफेसर हो गये.  यही नहीं स्वीडेन के मशहूर सर्जन और निश्चेतनाविज्ञानी (anaesthesiologist) जान गुलबर्ग को ख्याति गणित और विज्ञान लेखन की वजह से मिला. उनकी प्रसिद्ध पुस्तक – मैथमेटिक्स :- फ्रॉम द बर्थ ऑफ़ नंबर्स को खूब सराहना मिली और अमेरिकन मैथमेटिकल सोसाइटी ने तो इस पुस्तक को समकालीन पुस्तकों में सर्वश्रेष्ठ कह दिया. अब बात आगे बढ़ाते हैं और ऐसे दो गणित के रोचक लेखक की बात करें जिन्हें हर कोई बड़े चाव से पढता है पर ये सज्जन गणित के साथ बढे तो नहीं थे पर गणित ने इन्हें फलक पर बिठा दिया. मार्टिन गार्डनर का नाम आपने सुना ही होगा. गणित की पहेली और दिमागी कसरत पर लिखी इनकी पुस्तक आज हर बड़े और बच्चों की पसंद है. साइंटिफिक अमेरिकन पत्रिका के लिए लिखते हुए इन्होने अपना खूब नाम कमाया और साथ ही भारतीय गणितज्ञ  कापरेकर के खोजों को पुरे विश्व में मशहूर कर दिया. महान गणितज्ञ रामानुजन की जीवनी लिखने वाले रोबर्ट केनिगल जो पेशे से एक स्वतंत्र लेखन का काम करते हैं को उनकी पुस्तक – वह व्यक्ति जो अनंत जानता है ( a man who knew infinity) ने मशहूर बना दिया. 2015 में बनी फिल्म man who knew infinity इसी पुस्तक पर आधारित है.

गेरेलामो कार्डेनो का नाम गणित में बड़े आदर से लिया जाता है. पेशे से डॉक्टर कार्डेनो ने अपनी पढाई के बाद अपना क्लिनिक खोलने की इच्छा जताई पर सरकारी तंत्र से इनके मतभेद की वजह से इन्हें मिलान शहर में क्लिनिक के लिए लाइसेंस नहीं दिया गया और ये  शहर छोड़ दुसरे शहर चले गये जहाँ इन्होने बिना लाइसेंस के अपना क्लिनिक खोला पर गणित के प्रति प्यार की वजह से ये मिलान में गणित के प्राध्यापक भी बन गये और अपने क्लिनिक और गणित अध्यापन का काम करते रहे. कार्डेनो को ऋणात्मक संख्या पर यूरोपीय देशों में सबसे पहले काम करने के लिए जाना जाता है साथ ही बीजगणित में त्रिघात और चतुर्घात समीकरण का हल करने का श्रेय भी इन्हें दिया जाता है.  तरतगलिया के द्वारा त्रिघात और चतुर्घात समीकरण के हल का पत्र व्यव्हार को इन्होने अपनी खोज बताकर प्रकाशन कराया यह आरोप भी इनपर लगता है पर जब बात पत्र व्यव्हार की हो तो अनायास कबूतर की याद आती है जो सन्देश वाहक का काम करते हैं . गणित में एक ऐसे ही सिद्धांत को कबूतरखाना (पिजनहोल) समस्या के रूप में जानते हैं. यदि n वस्तु को m खाने में रखा जाए जहाँ n > m तो कम से कम एक खाना ऐसा होगा जिसमे एक से अधिक वस्तु रखी जाएगी .


यहाँ 9 खाने में 10 कबूतर बैठे है इसलिए एक खाने में एक से अधिक कबूतर बैठे हैं. इसे आप ऐसे समझे अगर आपके पास 3 मौजे हैं तो इनमे 2 मौजे या तो बाएं पैर के लिए होंगे या दायें. डाकघर में चिठ्ठी की छटाई इसी सिद्धांत के आधार पर की जाती है. यही नहीं जन्मदिन से सम्बंधित प्रायिकता के प्रश्नों के हल करने में भी यह विधि कारगर है. बस गणित के ऐसे ही अनछुए पहलू पर आगे भी चर्चा जारी रहेगी .

डॉ राजेश कुमार ठाकुर

 

नारद पुराण और गणित 2

 

क्या आप जानते हैं ?



पिछले अंक में नारद पुराण में वर्णित योग, घटा, गुणा, भाग, वर्ग, वर्गमूल , घन और घनमूल की चर्चा आपने पढ़ी होगी . इसी क्रम को आगे बढ़ाते हुए आज कुछ नई जानकारी आपसे साझा करते हैं. नारद महापुराण में गणित के इन 8 मुख्य संक्रियाओं के अलावा भी कई महत्वपूर्ण गणितीय विधियों के बारे में जानकारी उपलब्ध है बस आज इन्हीं कुछेक बिन्दुओं पर चर्चा करते हैं - -

अन्योन्यहारनिड़ती हरांशी तु समच्तिदा ॥ २१॥ लवा लवघ्ना हरा हरघ्ना हि सवर्णनम् । भागाभागे विज्ञेयं मुने शास्त्रार्थचिन्तकैः ॥ २२ ॥ अनुवन्धेऽपवाहे चैकस्य चेदधिकोनकः । भागास्तलस्थहारेण हारं स्वांशाधिकेन तान् ॥ २३ ॥ ऊनेन चापि गुणयेद्धनर्णं चिन्तयेत् तथा । कार्यस्तुल्यहरांशानां योगश्चाप्यन्तरो मुने ॥ २४ ॥ अहारराशौ रूपं तु कल्पयेद्धरमप्यथ । अंशाहतिश्छेदघातहद्भित्रगुणने फलम् ॥ २५ ॥ छेदं चापि लवं विद्वन् परिवर्त्य हरस्य च । शेषः कार्यों भागहारे कर्तव्यो गुणनाविधिः ॥ २६ ॥

उपरोक्त श्लोक में भिन्न को जोड़ने और घटाने की विधि का उल्लेख है. यदि किसी भिन्न को जोड़ना हो तो सबसे पहले किसी निश्चित संख्या से अंश और हर में गुणा करके भिन्न का हर बराबर करें और फिर इन्हें जोड़े या घटाएं . भिन्नों को जोड़ने की इस प्रक्रिया को भागानुबंध तथा घटाने की प्रक्रिया को भागापवाह कहते हैं.

उदाहरण :-  

यही नहीं यदि किसी भिन्न के हर में कोई संख्या ना लिखी हो तो उसे 1 मानकर संक्रिया करने की सलाह इस श्लोक में दी गयी है. साथ ही दो भिन्नों के गुणनफल के लिए इनके अंश को अंश के साथ तथा हर को हर के साथ गुणा करने पर अभीष्ट परिणाम आता है. इसी प्रकार यदि भिन्न के बीच भाग की प्रक्रिया अपनानी हो तो पहले भिन्न के अंश और दुसरे भिन्न के हर को आपस में गुणा करके अंश की जगह और पहले भिन्न के हर को दुसरे भिन्न के अंश से गुणा करके हर की जगह रखने से भाग संपन्न होता है .

 तथा  होगा

भिन्न को वर्ग करने  के लिए अंश और हर को परस्पर वर्ग करें साथ ही घन करने के लिए अंश को स्वयं से 3 बार तथा हर को भी स्वयं से तीन बार गुणा करें अभीष्ट परिणाम प्राप्त होगा.

हरांशयोः कृती वर्गे घनौ घनविधी मुने। पदसिद्धयै पदे कुर्यादयो खं सर्वतश्च खम् ॥ २७ ॥

 तथा  

नारद पुराण में अंकगणित के अलावा बीजगणित के कई नियम दिए गये हैं. जिनमे अज्ञात संख्या को निकालने का तरीका भी दिया गया है. सबसे मजेदार बात यह है की यदि किसी दो संख्या का योग और इनका अंतर दे रखा हो तो संख्या निकालने का तरीका भी दे रखा है.

योगोऽन्तरेणोनयुतऽधितो राशी तु संक्रमे । राश्यन्तरहृतं वर्गान्तरं योगस्ततश्च तौ ॥ ३१

यदि दो संख्या का योग और अंतर ज्ञात हो तो योग के लिए संख्या को दो बार लिखकर परिणाम को आधा करें तो पहली संख्या प्राप्त होगी और यदि दोनों दी गयी संख्या को अंतर करके आधा करने से दूसरी संख्या प्राप्त होती है.  उदाहरण के लिए यदि दो संख्या का योग 101 तथा अंतर 25 है तो संख्या ज्ञात करें. इन दोनों संख्या को योग करके आधा करने से पहली संख्या प्राप्त होती है.  पहली संख्या = तथा दूसरी संख्या के लिए इन्हें घटाकर आधा करना पड़ेगा . दूसरी संख्या =

यही नहीं इस पुस्तक में त्रैराशिक नियम , द्विघात समीकरण , साधारण समीकरण पर आधारित कई प्रश्नों को हल करने सम्बंधित श्लोक मिलते हैं जिसका उपयोग गणित को समझने और और सुंदर बनाने में उपयोग करने की आवश्यकता है.

 

डॉ राजेश कुमार ठाकुर

 

 

 

 

नारद पुराण और गणित - 1

 

क्या आप जानते हैं ?


वेद और पुराण में गणित के बारे में कई बातें लिखी गयीं है. वेद तो प्राचीनतम ग्रंथों में से एक है पर पुराण की रचना बाद में हुई . पुराणों में धार्मिक स्थलों, पूजा की विधि, ईश्वरीय महात्म्य के अलावा गणित, खगोल और विज्ञान के रहस्य भी भरे पड़े हैं . महाभारत के रचनाकार महर्षि वेदव्यास जी ने सिर्फ एक पुराण – विष्णु पुराण लिखी जो कालान्तर में अलग- अलग ऋषियों द्वारा लिखी गयी और अंततः 18 पुराण आज उपलव्ध हैं. आज हम इन्ही पुराणों में से एक – नारद पुराण की चर्चा करेंगे और इसमें आधारित गणितीय संकल्पनाओं पर प्रकाश डालेंगे. नारद पुराण ज्यादा पुराना हो ऐसा प्रतीत नहीं होता परन्तु इनके श्लोकों को देखने से यह जरुर ज्ञात होता है की इसकी रचना 9 वीं शदी के बाद हुई होगी. खैर मूल प्रश्न पर आते हैं. नारद पुराण में गणित 

त्रिस्कन्धं ज्यौतिषं शास्त्रं चतुर्लक्षमुदाहृतम् ।

गणितं जातकं विप्र संहितास्कन्धसंज्ञितम् ॥ २

गणिते परिकर्माणि खगमध्यस्फुटक्रिये ।

अनुयोगश्चन्द्रसूर्यग्रहणं चोदयास्तकम् ॥३

छाया भृङ्गोन्नतियुती पातसाधनमीरितम्।

अर्थात ज्योतिषशास्त्र में चार लाख श्लोक हैं जिसे तीन स्कंध – गणित , जातक और संहिता में व्यक्त किया गया है. गणित में परिकर्म , ग्रह , देश, दिशा और काल का ज्ञान, सूर्य और चंद्रग्रहण, सूर्यास्त और सूर्यउदय के बारे में ज्ञान मिलता है. यहाँ गणित के परिकर्म की बात करें तो ये आधुनिक गणित के 8 मौलिक गणितीय संक्रिया – जोड़, घटा, गुणा, भाग, वर्ग, वर्गमूल, घन तथा घनमूल को 8 परिकर्म माना गया है.  नारद पुराण में दाशमिक प्रणाली में संख्याओं को लिखने और उसके नामकरण के बारे में भी भरपूर चर्चा आपको मिलेगी जो वेदों में दाशमिक प्रणाली से लिखी संख्या के समरूप हैं. इसकी एक बानगी निम्न श्लोक में दिखती है ---

एकं दश शतं चैव सहस्रायुतलक्षकम् ॥ १२ ॥ प्रयुतं कोटिसंज्ञा चार्बुदमब्जं च खर्वकम्। निखर्वं च महापद्यं शङ्कुर्जलधिरेव च ॥१३॥ अन्त्यं मध्यं परार्द्ध च संज्ञा दशगुणोत्तराः । क्रमादुत्क्रमतो वापि योगः कार्योऽन्तरं तथा ॥ १४ | हन्यागुणेन गुण्यं स्यात् तेनैवोपान्तिमादिकान्। | शुद्धयेद्धरो यद्गुणश्च भाज्यान्त्यात् तत्फलं मुने ॥ १५

इस श्लोक में भी ऋग्वेद की तरह संख्या को 10 के घात में लिखने का नियम और उसके परस्पर नामकरण हैं. यहाँ भी एक, दश, सौ, सहस्र(1000). अयुत(10000). लक्ष (100000), प्रयुत (10 लाख), कोटि (करोड़), अर्बुद (दश करोड़), अब्ज (अरब), खर्व(दस अरब), निखर्व (खर्ब), महापद्म (10 खर्ब),शंकु . जलधि, अन्त्य, मध्य, परार्ध (10 की घात 17) तक की संख्या का वर्णन है. साथ ही इन्हें योग या अंतर करने के लिए  दाई से बायीं ओर बढ़ते हुए करना चाहिए. गुणा के लिए गुण्य के अंतिम अंक को गुणक से फिर उसके पार्श्ववर्ती अंक को उसी गुणक से गुणा करना आवश्यक है , इसी तरह आदि अंक तक गुणन करने पर गुणनफल प्राप्त होता है. भाग के लिए जितने अंक से भाजक को गुणा करने पर गुणनफल भाज्य  में घट जाये वही अंक भागफल होता है, ऐसा इस श्लोक में बताया गया है.

समाङ्ख्यातो वर्ग: स्यात् तमेवाहुः कृतिं बुधाः 

समयङ्कहतिः प्रोक्तो घनस्तत्र विधिः पदे ॥ १८ ॥

इसके अलावा नारद पुराण में किसी संख्या को उसी संख्या से दो बार गुणा करने पर वर्ग की प्राप्ति होती है और विद्वान लोग उसे कृति कहते हैं ऐसा बताया गया है. साथ ही समान अंक को तीन बार गुणा करने पर घन की प्राप्ति होती है. नारद पुराण में इसके अलावा वर्गमूल और घनमूल के जो तरीके बताये गये हैं वो आधुनिक तरीके से मेल खाते हैं. घनमूल ज्ञात करने की विधि का पहला प्रमाण आर्यभट की पुस्तक आर्यभटीय में दिखता है

अघनाद् भजेद् द्वितीयात् त्रिगुणेन घनस्य मूलवर्गेण ।

वर्गस्त्रिपर्वगुणितः शोध्यः प्रथमाद घनश्च घनात् ||

इसके अलावा भिन्न पर आधारित कई संक्रियाओं पर चर्चा नारद पुराण में मिलते हैं जिसपर अगले अंक में बात करेंगे. यहाँ सिर्फ मेरा उद्देश्य भारतीय धार्मिक ग्रंथों में गणित के रहस्यों का उद्घाटन मात्र था.

डॉ राजेश कुमार ठाकुर

बारिश में अधिक कौन भीगेगा

  क्या आप जानते हैं – अली नेसिन को टर्की में गणित ग्राम की स्थापना और गणित के प्रचार -प्रसार के लिए 2018 में लीलावती पुरस्कार प्रदान किया ...