गणित के रोचक तथ्य
गणित रोचकता से भरपूर है और यही रोचकता ही इसका सौन्दर्य है. गणित के
सागर के किनारे बैठ आप सिर्फ अपने मन को बहला तो सकते हैं परन्तु इसके भीतर प्रवेश
कर अनगिनत मोती और माणिक पाकर इसके सदुपयोग की सोच सकते हैं. तो आइये मेरे साथ
गणितीय सागर की सैर को चलिए और करिये इकट्ठा बेशकीमती मोती को.
· अभाज्य संख्या के बारे में तो आप जानते ही होंगे. ऐसी संख्या जिसके गुणनखंड सिर्फ 1 और वो संख्या खुद होती है. दो संख्याओं के बीच कितनी अभाज्य संख्या है इसके बारे में एरेटोस्थेनेज की छलनी विधि का प्रयोग हम करते आये हैं पर क्या आप जानते हैं 9,999,900 से 10,000,000 के बीच सिर्फ 9 अभाज्य संख्या मौजूद हैं जो 9999901, 9999907,9999929, 9999931, 9999937, 9999943, 9999971, 9999973 और 9999991 है परन्तु अगली 100 संख्याओं (10000000 से 10000100 तक ) में सिर्फ 2 अभाज्य संख्या 10000019 एवं 10000079 मौजूद है.
· सबसे पुरानी गणित पर प्राप्त पुस्तकों की बात करें तो लगभग 2200 ईसा पूर्व में लिखी रहिंद पेपिरस जिसे अह्मस पेपिरस के नाम से भी जानते है आज ब्रिटिश म्यूजियम में मौजूद है. इस पुस्तक से मिस्र की गणितीय उपलब्धियों की जानकारी मिलती है. इस पुस्तक के जो अंश मौजूद है उनमे बीजगणित, ज्यामिति, क्षेत्रमिति इत्यादि गणितीय विषयों के करीब 80 प्रश्न मौजूद हैं.
· आर्कमिडीज को ज्यामिति से बेहद प्यार था और इसी कारण उन्हें रेत पर ज्यामितिक आकृति बनाते देखने की बात प्रसिद्ध है. कहते हैं की आर्कमिडीज की मृत्यु एक सैनिक जो उन्हें राजा के बुलाबे पर ले जाने आया था ने गुस्से में आकर इसलिए कर दी क्योंकि आर्कमिडीज रेत पर वृत्त बनाने में इस कदर व्यस्त थे कि उन्होंने उस सैनिक की ओर कोई ध्यान ही नही दिया. आर्कमिडीज की ईच्छा थी की उनकी मृत्यु के पश्चात उनके कब्र पर गोले और बेलन का चित्र अंकित करवा दिया जाये और ऐसा हुआ भी
· फिबोनिकी ने एक नर और मादा जोड़े की मदद से यह मानते हुए की अगर प्रत्येक जोड़ा 1 माह में वयस्क बनकर 1 नर और मादा बच्चे को जन्म दे तो एक गणितीय श्रेणी बनती है जिसे उन्होंने फिबोनिकी श्रेणी का नाम दिया
इस श्रेणी के अंक क्रमशः 1, 1, 2, 3, 5, 8, 13, 21, 34, 55, .... है जहाँ प्रत्येक अगली संख्या पिछले दो संख्याओं के योग के बराबर है. प्रकृति में यह रोचक संख्या हर जगह हैं. अनानास में उल्टी और सीधी दिशा में क्रमशः 8 और 13 धारियां मिलती हैं , सूर्यमुखी के फूलों के बाहरी हिस्सों में 55 और आन्तरिक हिस्सों में 34 घुमावदार कुंडली नुमा आकृति होती है. यहाँ 8, 13, 21, 34, 55 सब फिबोनिकी संख्या ही हैं जिसे आप प्रकृति में देख आनंद महसूस कर सकते हैं. परन्तु जो रोचक बात मैं बताना चाह रहा हूँ वो फिबोनिकी संख्या की भारतीयता से संवंधित है. आचार्य पिंगल ने सबसे पहले अपनी पुस्तक छंद शास्त्र में इसका प्रयोग संगीत में ताल के रूप में किया था जिसमे लघु और गुरु स्वर की मात्रा को आज की फिबोनिकी संख्या के रूप में 200 ईशा पूर्व दिखाया गया था. इसके बाद 7 वी शदी में बिरहंक और 8 वी शदी में हेमचन्द्र ने उल्लेख किया था.
डॉ राजेश कुमार ठाकुर
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