Thursday, June 8, 2023

भाग में शून्य का राज

 

भाग में शून्य का राज

कई बार आपके मन में प्रश्न उठते होंगे कि भागफल में कभी बीच में तो कभी अंत में शून्य क्यों लगाया जाता है और ऐसा करने के पीछे क्या कारण है ? इस प्रश्न को अच्छे से समझने के लिए हम तीन उदाहरण कि मदद लेंगे -  

पहला उदाहरण काफी अहम् है क्योंकि यह सवाल कई छात्रों के लिए पिछले वर्ष एक पहेली सा रहा कि आखिर भागफल में शून्य कब लगे और कब नहीं? एक शिक्षक अपने वर्षो के अनुभव से इन प्रश्नों का हल करना अपने छात्रों को सीखा तो पाता है पर बहुत कम ही शिक्षक शून्य के रहस्यों से पर्दा उठाने का प्रयास करते हैं और यह सिलसिला कई पीढियों तक चलता रहता है. इस अंक में मेरा प्रयास रहेगा कि मैं अपनी अल्प समझ से कुछ प्रकाश डाल सकूं. भाग लगातार घटा कि एक प्रक्रिया है. यदि हमें 12 में 4 से भाग देना है तो हम 12 में से 4 को बार बार घटाएंगे जबतक कि शेष 4 से कम या शून्य ना हो जाये.

12 – 4 = 8 (पहला चरण)  8 – 4 = 4 (दूसरा चरण) 4 – 4 = 0 (तीसरा चरण) अर्थात 12 ÷ 4 = 3 होगा. अब बात करें 635÷7  की. बारम्बार भाग से इसका हल पाना थोडा असंभव है इसलिए हम भाग विधि का प्रयोग करेंगे. भाग विधि में हम भाजक के अंक (यहाँ 1 अंक 7 है) से भाज्य के उतने ही अंक में भाग देते हैं. ऐसे भाग देने का अर्थ है किसी दी गयी वस्तु को बराबर भागों में बाँटना.


सबसे पहले 7 से 6 में भाग देना आवश्यक है और चूँकि 6 वस्तुओं को 7 में बाँटने से किसी को भी सम्पूर्ण हिस्सा मिलना संभव नहीं है , हम भागफल में 0 लिखते है और फिर 7 × 0 = 0 को 6 से घटाते हैं. घटाने के बाद अगला अंक 3 नीचे आने से हमारा भाज्य 63 हो गया जो 7 को 9 बार गुणा करने से प्राप्त होगा. अगला अंक 5 अब नीचे आएगा और पुनः 5 ( भाज्य) , भाजक 7 से कम है इसलिए हमे इसे शून्य (0) से गुणा कर भाग देना पड़ेगा.


याद रखें – भाज्य से हर बार भाग देकर घटाने के बाद एक अंक नीचे उतरेगा और जब तक उपर से अंक नीचे आते रहेंगे उसे भाग देना आवश्यक है . अगर वो अंक भाजक से छोटा हो तो हमें शून्य से गुणा करके प्रक्रिया को आगे बढ़ाना पड़ेगा. यदि भाज्य से कोई अंक नीचे नहीं उतर रहा हो तो भागफल में शून्य देने या भाजक को शून्य से गुणा करके नये भाज्य से घटाने कि प्रक्रिया दोहरानी पड़ेगी. चूँकि हम शून्य से गुणा कि प्रक्रिया को भाग के दौरान करके नहीं दिखाते हैं इसलिए बच्चे अक्सर ऐसे भागों में गलती कर जाते हैं .

दुसरे उदाहरण में पहले चरण के बाद भाज्य से 1 नीचे कि ओर आएगा जिसे 12 से भाग देना संभव नहीं है इसलिए 12 को सबसे पहले 0 के साथ गुणाकर इस संक्रिया को दुहराने कि आवश्यकता होगी. जैसा कि नीचे तीसरे उदाहरण के हल में दिखाया गया है.

इस तरह कि भाग देने कि प्रक्रिया विश्व के कई देशों में अपनाई जाती है जिसकी वजह से वहां इस तरह कि गलती कम होती है. भारत जैसे देशों में भाग में हम कई चरणों को करके नहीं दिखाते इसलिए गलती कि सम्भावना कम होती है. गणित को रोचक बनाकर भी भाग करना सिखाया जा सकता है.

मान लीजिये 635 को 7 देने वाले प्रश्न को हम अगर बच्चों के साथ एक शब्द -समस्या के रूप में लेकर आते , मसलन – 635 रूपये / लड्डू को 7 व्यक्तियों में बांटने पर प्रत्येक बच्चे को कितने रूपये/लड्डू मिलेंगे पूछने पर कोई भी बच्चा 9 रूपये/ लड्डू नहीं कहेगा.

इतिहास कि बात – भाग के लिए क्षैतिज रेखा 


का प्रयोग 13 वी शदी में यूरोप में फिबोनिकी ने किया , वही भाग के लिए तिरछी रेखा (16/4) का प्रयोग सबसे पहले 1845 में डी मॉर्गन ने की. भाग के लिए (÷) चिन्ह का प्रयोग जोहान रेन ने 1645 में अपनी पुस्तक में की. वर्तमान समय में लम्बी भाग देने के लिए जिस विधि का प्रयोग होता है वह विशुद्ध रूप से भारतीय है जो भारत से अरब मुल्क होते हुए  पुरे यूरोप में गया.

डॉ राजेश कुमार ठाकुर  



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गणित और रामायण

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