ऐसा क्यों होता है -3
गणित में क्या सबसे बड़ी संख्या अनंत है ?
अनंत कोई संख्या नहीं है. यह एक अवधारणा है. यह सही है कि
अनंत से बड़ी कोई संख्या नहीं है परन्तु इसका अर्थ यह नहीं है कि अनंत सबसे बड़ी
संख्या है क्योंकि यह कोई संख्या ही नहीं है. बृहदारण्यक उपनिषद में इंद्र के
गोपनीय शक्ति को अनंत कहा गया.
ॐ पूर्णमदः पूर्णमिदं पूर्णात्पूर्णमुदच्यते ।
पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्यते ॥
परमात्मा सभी
प्रकार से सदा सर्वदा परिपूर्ण है। यह जगत भी उस परब्रह्म से पूर्ण ही है, क्योंकि यह पूर्ण उसी पूर्ण से ही उत्पन्न
हुआ है। उस पूर्ण में से पूर्ण को निकाल देने पर भी वह पूर्ण ही शेष रहता है।
अर्थात , अनंत से ही अनंत का जन्म होता है और जब अनंत से अनंत को निकाल लिया जाता
है तो अनंत ही शेष रहता है. भास्कराचार्य पहले भारतीय गणितज्ञ थे जिन्होंने
सर्वप्रथम अनंत कि अवधारणा पर विचार किया. उनके अनुसार – खः
भाजितो राशि खहर स्यात – अर्थात कोई संख्या जिसका हर शून्य हो उसे खहर कहा
जाता है. वर्तमान परिपेक्ष्य में a/0 = ∞
कल्पना कीजिये कि एक
चरवाहा जिसे 20 तक कि गिनती आती है और उसके पास 20 गायें है एक दिन एक गोशाला में
चला जाता है जहाँ हजारों गायें मौजूद हैं तो उसके लिए उन गायों कि संख्या एक बड़ी
संख्या अनंत जैसी लगेगी क्योंकि उसने 20 से ज्यादा संख्या का प्रयोग नहीं किया है.
इसी प्रकार अनंत उन सभी संख्याओं से बड़ी संख्याओं के लिए प्रयुक्त एक चिन्ह है
जिसकी जानकारी आपके पास नहीं है क्योंकि सबसे बड़ी संख्या कौन सी है इसका अनुमान
नहीं लगा सकते. मान लीजिये विश्व कि जनसँख्या आज करीब 8 खरब है जो काफी बड़ी संख्या
है पर कुछ घंटे बाद यदि 10 बच्चों ने जन्म
ले लिया तो अब नई संख्या 8 खरब + 10 हो जाएगी. आप कितनी भी बड़ी संख्या चुन लें
उसमे सिर्फ 1 जोड़ने मात्र से नई संख्या पिछली संख्या से बड़ी हो जाएगी. अरस्तु ने
लिखा - प्राकृतिक संख्याओं की केवल एक परिमित संख्या ही कभी लिखी गई है या कभी
कल्पना की गई है। अगर L अब तक निकाली गई सबसे बड़ी
संख्या है, फिर मैं और आगे जाकर लिखूंगा L + 1 या L का वर्ग
परन्तु ये फिर भी परिमित ही रहेगी .
भगवदगीता के 11 वे
अध्याय के 16 वे और 19 वे श्लोक में इश्वर के अनंत रूप के बारे में कहा गया है –
अनेकबाहूदरवक्त्रनेत्रं पश्यामि
त्वां सर्वतोऽनन्तरूपम् ।
नान्तं न मध्यं न पुनस्तवादिं पश्यामि विश्वेश्वर विश्वरूप||
11-16||
हे सम्पूर्ण विश्व के
स्वामिन्! आपको अनेक भुजा, पेट,
मुख और नेत्रों से युक्त तथा सब ओर से अनन्त रूपों वाला देखता हूँ।
हे विश्वरूप! मैं आपके न अन्त को देखता हूँ, न मध्य को और न
आदि को ही.
अनादिमध्यान्तमनन्तवीर्य-मनन्तबाहुं शशिसूर्यनेत्रम् |
पश्यामि त्वां दीप्तहुताशवक्त्रं-स्वतेजसा विश्वमिदं तपन्तम् ||11 – 19||
आपको आदि, अंत और मध्य से रहित, अनन्त सामर्थ्य से युक्त, अनन्त भुजावाले, चन्द्र-सूर्य रूप नेत्रों वाले, प्रज्वलित अग्निरूप
मुखवाले और अपने तेज से इस जगत को संतृप्त करते हुए देखता हूँ .
अभी तक खोजी गयी बड़ी संख्याओं कि बात करें तो गूगोल जिसका मान 1 के आगे 100 शून्य और गूगोलप्लेक्स जिसका अर्थ 1 गूगोल के आगे 100 शून्य होना है. आर्किमिडीज की गणना के अनुसार, एरिस्टार्चस का ब्रह्मांड (व्यास में लगभग 2 प्रकाश वर्ष) को यदि पूरी तरह से रेत से भर दिया जाये तो इसके लिए 10 के घात 63 रेत के दाने कि आवश्यकता होगी. कार्ल सागन ने बताया कि ब्रह्मांड में प्राथमिक कणों की कुल संख्या लगभग 10 के घात 80 (एडिंगटन संख्या) है और यदि पूरे ब्रह्मांड को न्यूट्रॉन से भर दिया जाए ताकि कहीं भी कोई खाली जगह न हो, तो लगभग यह 10 के घात 128 होगा. इस हिसाब से ये दोनों संख्या काफी बड़ी है पर ये याद रहे कि इससे बड़ी संख्या जब जरूरत पड़ेगी खोजा जा सकता है तथा अनंत कोई संख्या नहीं बल्कि एक कल्पना है .
अनंत के लिए ∞ चिन्ह कि खोज अंग्रेज गणितज्ञ जॉन वालिस ने कि जिसका उल्लेख वालिस कि पुस्तक
अरिथमेटिक इन्फिनिटोरियम में है जो 1655 में प्रकाशित हुई.
डॉ राजेश कुमार ठाकुर
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