Tuesday, March 8, 2016

बड़ी -बड़ी संख्याओं का देश भारत

मनुष्य जन्म के साथ ही गणित की छोटी-छोटी बारीकियां समझना और समझाना शुरू कर देता है . जन्म के समय शिशु का वजन, जन्म-समय, दिन, माह साल इत्यादि अंको का ही तो खेल है. अंको का यह सफ़र मृत्युपर्यंत चलता रहता है . प्राचीन समय में लोगों की इच्छाएं सीमित थी और साधन भी अतः उन्हें हाथ और पैर की उंगलीयों पर गिन कर काम चल जाता था परन्तु कालान्तर में जैसे जैसे मनुष्य की जरूरत बढती गयी संख्याओं की जरूरत भी उतनी ही महती होती गयी और अब संख्या को लिखने के लिए शब्द की जरुरत होने लगी. जैसे 1 (एक ),2(दो), 3(तीन), 4(चार) ------10(दश) इत्यादि . प्रस्तुत लेख में हिन्दू धर्म, बौद्ध धर्म और जैन धर्म में संख्याओं के सफ़र पर संक्षिप्त चर्चा करेंगे.
हिन्दू धर्म
हिन्दुओं का सबसे प्राचीनतम और महानतम ग्रन्थ वेद है. वेद का अर्थ होता है – जानना. वैदिक संस्कृति हमारी सांस्कृतिक धाती है और वेद हमारी अतीत गाथा की उद्गाता. वेदों की संख्या चार है – ऋग्वेद, सामवेद , अथर्ववेद और यजुर्वेद. प्रस्तुत लेख में वेदों के अलावा रामायण , महाभारत और गीता पर भी चर्चा करने का भरसक प्रयास रहेगा. वेदों में शून्य के साथ- साथ 10^19 तक की संख्या का उल्लेख मिलता है. ऋग्वेद में 10^12 तक की संख्या के बारे में बर्णन है तो यजुर्वेद में 10^19. रामायण के बाल कांड में 10^60 तक की संख्याओं के बारे में पता चलता है . कृष्ण यजुर्वेद की इस श्लोक को देखिये जिसमे 1, 2, 3, 4, ---10, 100 , 1000 ---- अनंत की बात हुई है.


हे अग्नि देव आपको 1 बार, 2 बार , 3 बार --- 10 बार, 100 बार , 1000 बार --- अपरिमित बार नमस्कार है.
इतना ही नहीं वेदों में विषम संख्याओं पर भी चर्चा हुई है. विषम संख्या 2 से विभाजित नहीं होने वाली संख्या है जैसे – 1, 3, 5, 7, 9----


इस श्लोक में जो संख्या का प्रयोग हुआ है वह निश्चित ही विषम संख्या 1, 3, 5, --- 33 का एक समूह है . यही नहीं वेदों में एक ऐसा श्लोक दीखता है जो आपको सम संख्या के अलावा , समान्तर श्रेणी और 4 के गुनज के रूप में चर्ची की हुई है.


इस श्लोक में 4, 8, 12, 16,... 48 तक की संख्याओं को जो 4 के गुणज है साथ ही एक समांतर श्रेणी का निर्माण करते है जिसका प्रथम पद 4 , सार्व-अंतर और = 4 और अंतिम पद 48 है .
वेदों में दशगुणोत्तर गणना के बारे में भी चर्चा का उल्लेख मिलता है. याजुर्वेद्द के वाजसनेयी संहिता के 17वें अध्याय में गणना के लिए 13 नाम की सूचि दी गयी है.


यहाँ 1 (एक), 10(दश), 100(सौ), 1000(सहस्र), 10000(अयुत), 100000(नियुत),1000000(प्रयुत), 10000000(अर्बुद), 100000000(न्यर्बुद),1000000000(समुद्र), 10000000000(मध्य), 100000000000(अन्त) और 1000000000000(परार्ध) का प्रयोग किया गया है. इसी सूचि को आगे बढ़ाते हुए यजुर्वेद के तैतरीयसंहिता में 10^12 से आगे की संख्या के नाम मिलते है – 10^13 (उसस) , 10^14(वयुष्टि), 10^15(देशयत) , 10^16(उद्धयत), 10^17(उदित), 10^18(सुबर्ग) और 10^19(लोक) का वर्णन मिलता है . यदि मैं वाल्मीकि रामायण के युद्ध कांड की बात करूँ तो हमें वहां 10^60 तक की संख्या का पता चलता है . श्री राम जब अपनी सेना के साथ समुद्र पर 100 योजन लम्बा और 10 योजन चौड़ा पुल निर्माण कर लंका में दाखिल हुए तो रावण इतनी बड़ी सेना को देख डर सा गया और उसने तुरन्त अपने गुप्तचर शुक को सेना की ताकत और संख्या का पता लगाने भेजा और शुक ने वापस आकर जब राम की सेना का बखान किया तो सब अचंभित हो गए .


100 लाख = 1 कोटि = 10^7
1 लाख कोटि = 1 शंकु = 10^12
1 लाख शंकु = 1 महाशंकू = 10^17
1 लाख महाशंकु = 1 वृन्द = 10^22
1 लाख वृन्द = 1 महा वृन्द = 10^27
1 लाख महा वृन्द = 1 पद्म = 10^32
1 लाख पद्म = 1महापद्म = 10^37
1 लाख महापद्म = 1 खर्व = 10^42
1 लाख खर्व = 1 महाखर्व = 10^47
1000 महाखर्व = 1 समुद = 10^50
1 लाख समुद्र = 1 ओघ = 10^55
1 लाख ओघ = 1 महा औघ = 10^60

इस लक्षगणनोत्तर प्रणाली द्वारा राम की सेना में सैनिको की कल्पना आप बखूबी कर सकते हैं. महाभारत में भी बड़ी संख्या का प्रयोग तो दीखता है पर वह इतनी बड़ी नहीं है. परार्ध संख्या से आगे महाभारत में मुझे कुछ नहीं मिला पर एक मजेदार घटना का उल्लेख मैं अवश्य करूँगा . युद्ध समाप्ति के बाद जब युधिष्ठिर हस्तिनापुर लौटे और घृतराष्ट्र से मिलने गए तो उन्होंने युद्ध में मरे सैनिकों और बचे सैनिकों के बारे में जानकारी मांगी जिसका जवाब युधिष्ठिर ने कुछ यूँ दिया –


अर्थात मरने वाले सैनिकों की संख्या = 1000,000,000 + 660,000,000 + 20000 = 1660020000 तथा जीवित सैनिकों की संख्या = 240165 थी .आपने महात्मा बुद्ध का नाम तो अवश्य सुना होगा. महाराज दण्डपाणी की पुत्री गोपा से जब उनका विवाह ठीक हुआ तो उन्हें उस समय के रीति के अनुसार परीक्षा देना पड़ा और जब बारी गणित के आई तो गुरु अर्जुन ने उनसे पूछा – राजकुमार गौतम क्या तुम कोटि से आगे की शतोत्तर गणना जानते हो ? राजकुमार का जबाब हाँ में था और उन्होंने 10^53 = तल्लक्ष्ण तक की संख्या बता दी इसके आगे भी उनहोंने अग्रसारा एक संख्या का उल्लेख किया जिसका मान आजके सबसे बड़े सख्या गुगोल (10^100) से अधिक है .
1अग्रासारा = 10^421.
महात्मा बुद्ध द्वारा बताई गयी संख्या इतनी ही नहीं है , अगर आप ललितविस्तर पुस्तक पढ़े तो सबसे बड़ी संख्या ज्योतिबा दिखती है जिसका मान 10^ 80000 अनंत के बराबर है. अगर हम वेदों की बात करें तो हम पाते हैं की ऋग्वेद में 10 के गुणज यथा 20, 30 ---- के बारे में भी समान रूप से उल्लेख मिलता है.


इस श्लोक में 10, 20, 30, 40, 50, 60, 70, 80, 90, 100 तक की चर्चा की गयी है. संख्याओं को नाम देने में जोड़, घटा व् गुणन के सिद्धांत का भी बखूबी पालन किया गया है. पंचदश(15 = 5 + 10), सप्त-विंशति (27 = 7+ 20) , एकन्न चात्वरिशत (39 = 40 – 1), इसी क्रम को आगे बढ़ाएं


यहाँ संख्या को 3339 = 33 + 303 + 3003 के रूप में विस्तारित कर लिखा गया है .


में 60099 = 60 × 1000 + 90 + 9 के रूप में लिखने का अर्थ संख्या के विस्तारण का अर्थ प्राचीन वैदिक काल के ऋषियों को था यह हम स्पष्ट रूप से कह सकते हैं . इतना ही नहीं अर्द्ध (1/2) , त्रिपाद(3/4), पंचमश्य चतुर्विंश ( 1/5 का 1/24) इत्यादि का उल्लेख उनके भिन्न के जानकारी का ध्योतक है. अब सवाल उठता है की क्या वेदों में शून्य के सम्बन्ध में कुछ कहा गया है की नहीं . कई विद्वान इसे न में उत्तर देंगे तो कई इसे हाँ कहेंगे और इसमें मैं भी शामिल हूँ. मैंने धर्म और गणित नाम से जव अंग्रेजी में एक पुस्तक लिखी जिसमे कई धार्मिक ग्रंथो को वर्षों पढने के बाद पाया की अथर्ववेद में अनुपलब्धता को दिखने के लिए शुन्येषी शब्द का प्रयोग हुआ है.

शून्य की खोज जीवन में एक क्रांति की तरह है और आपको महेंद्र कपूर का यह गाना तो याद होगा –
जब जीरो दिया मेरे भारत ने , दुनिया को तब गिनती आई
इसी बात को प्रो. हालस्टीड ने अपने शब्दों में यूँ व्यक्त किया है –
शुन्य के अविष्कार तथा इसके महत्व की जितनी भी प्रशंसा की जाये कम है . कुछ नहीं वाले इस शून्य को न केवल एक स्थान , नाम , चिन्ह या संकेत प्रदान करना, वल्कि इसमें उपयोगी शक्ति भरना, उस भारतीय मस्तिष्क की एक विशेषता है जिसने इसे जन्म दिया . यह निर्वाण को विद्युत शक्ति में बदलने जैसा है. गणित के किसी अन्य अविष्कार ने मानव की बुद्धि और शक्ति को इतना अधिक बलशाली नहीं बनाया है .
आचार्य पिंगल ने अपनी पुस्तक छंदशास्त्र में इसा पूर्व 200 सदी में शून्य को गायत्री मन्त्र से जोड़ दिया. गायत्री मन्त्र में 4 पद हैं और इसमें प्रत्येक पद में 6 अक्षर है . यदि इसे आधा कर इसमें 1 घटा दिया जाये और फिर इसे आधा कर पुनः इसमें 1 घटा दिया जाये तो हमें शून्य प्राप्त होता हैं .


0 = ½ {1/2 of 6 – 1} - 1
आधुनिक समय में शून्य के लिए जो हम संकेत की बात करते है वह संकेत ग्वालियर के विष्णु मंदिर में स्थित राम शिला पर उधृत है . जहाँ 270 में 0 का वही संकेत मौजूद है जो हम उपयोग करते हैं.


हमारे धर्मशास्त्रो में अनंत की असीम कल्पना की गयी है – हरि अनंत हरी कथा अनंता द्वारा ईश्वर की अनन्त होने की कल्पना दिखती है. ईशोपनिषद् में एक श्लोक आता है -


जिसका अर्थ है – यदि हम पूर्ण में पूर्ण को घटाए तो शेष भी पूर्ण ही रहता है. इसी बात की पुष्टि हमारे ग्रन्थ श्रीमद भगवद्गीता में भी मिलता है.


आपने यहाँ देखा की धर्मग्रन्थ में संख्या के बारे में इतनी जानकारी दी गयी है की आप इसे सुनना ही चाह रहे होंगे परन्तु मैं अपने सुधि पाठकों को पहले इसे आत्मसात करने को कहूँगा और फिर किसी अन्य विषय जैसे ज्यामिति , अंकगणित , वेदांग गणित , ज्योतिष , त्रिकोणमिति पर चर्चा करूँगा .

डॉ. राजेश कुमार ठाकुर
235 , पॉकेट- जी एच -4, सेक्टर -28 , रोहिणी
दिल्ली -110042
फ़ोन- 9868060804
email :- rkthakur1974@gmail.com

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गणित और रामायण

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