Tuesday, April 21, 2020

गणित शिक्षण की चुनौतियाँ - डॉ राजेश कुमार ठाकुर

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गणित विषय को पढ़ाना हमेशा से एक चुनौती भरी एक डगर रही है। वर्तमान परिपेक्ष्य में जब गणित का अध्यापक बनना ही अपने आप में एक काँटों से भरा राह चुनने के समान हो गया है क्योंकि आज गणित की सुधि लेने वाला कोई नही है। यह जानते हुए भी की गणित कितना महत्वपूर्ण विषय है आज समाज, छात्र और सरकारें सब इसके प्रति उदासीन है।

आज कक्षा 11 में गणित पढने वाले छात्रों की संख्या घटती जा रही है और गणित शिक्षण एक दुरह कार्य है।आख़िर गणित के प्रति लोगों का सौतेला व्यवहार क्यों? इस सवाल पर फिर कभी चर्चा करेंगे। आज शिक्षण क्षेत्र में आने वाली चुनौतियों पर ही ध्यान केन्द्रित करें तो ज्यादा अच्छा होगा।

सरकारी उदासीनता

गणित के शिक्षक कक्षा में सरकारी उदासीनता का शिकार हैं। शिक्षा के जो कार्यक्रम या पाठ्यक्रम बनाये जाते है वो शिक्षकों के ऊपर पर थोपने की कवायद है जिससे पठन पाठन प्रभावित होता है। 1968 की शिक्षा नीति हो या 1986 की या NCF 2005 हो या आने वाली नई शिक्षा नीति-2019। सरकार ऐसे नीति बनाने में उच्च शिक्षण संस्थानों के लोगों को प्रश्रय देती है जिन्हें कक्षा की वास्तविक सच्चाई से कोई लेना देना नही है। इसमें शहरों और ग्रामीण इलाके के शिक्षकों को प्राथमिकता मिलनी आवश्यक है जो नीति बनाते समय इसमें परिवर्तन के बारे में सच्ची जानकारी दे सकें पर यह धरातल पर उतार पाना मुश्किल है। कक्षा में अध्यापकों को वही पढाना है जो सरकार चाहती है।

प्राथमिक स्तर पर ‘विषय अध्यापकों’ की कमीऐसा देखा गया है की प्राथमिक स्तर पर शिक्षकों को सब विषय पढ़ाने का दायित्व होता है। ये तो जैक ऑफ़ आल ट्रेड वाली कहावत हो गयी। भला एक हिंदी का शिक्षक या सामाजिक अध्ययन में स्नातक अध्यापक गणित जैसे सूक्ष्म विषय पर कितना प्रकाश डाल पायेगा। यही से गणित के स्तर में गिरावट का जो सिलसिला चलता है वो आगे जाकर एक विशाल खाई के रूप में दृष्टिगोचर होता है। इस स्तर पर एक ऐसे योग्य विषय शिक्षक की आवश्यकता है जो गणित की पढ़ाई को जड़ से ही मजबूत बनाने में सहयोग दे। इसके साथ ही साथ गणित के प्रति लोगों की उदासीनता को अपनी प्रतिभा से बदलने में योगदान दे।

कक्षा का वातावरण

भारत में आज काफी प्राइवेट स्कूलों के खुलने के बाद भी 80% से अधिक छात्र सरकारी विधालयों में पढ़ते हैं जहाँ छात्र और शिक्षक का अनुपात 40: 1 नही वल्कि 60: 1 या 80: 1 है। ऐसे में शिक्षकों द्वारा सही तरीके से संवाद संभव नही होता। दूसरा सबसे महत्वपूर्ण पहलू है एक शिक्षक के पास ब्लैकबोर्ड और चाक के अलावा अधिक संसाधन नही होता ऐसे में – ग्राफ, रचना, त्रिविमीय आकृति को समझाना और पढाना काफी चुनौती भरा कार्य है। गणित की सही जानकारी छात्रों में अवलोकन के जरिये होता है। जब आप ब्लैकबोर्ड पर रचना करायेंगे, त्रिबिमीय आकृति समझायेंगे तो गणितीय ज्ञान की परिकल्पना एक कोरी कल्पना दिखेगी। इसके लिए आवश्यक है कक्षा में ग्राफ बोर्ड, कंप्यूटर के सॉफ्टवेर GEOGEBRA, ग्राफ के लिए ग्राफ या DOSMOS सॉफ्टवेयर का प्रयोग कर पढ़ाया जाये।

ब्रिज कोर्स’ का न होना

प्राथमिक कक्षा से जब छात्र मिडिल स्कूल यानी कक्षा 6 में आता है तो शिक्षक और छात्र खुद को ठगा महसूस करते है क्योंकि लर्निंग गैप को भरने के लिए अब कोई ब्रिज कोर्स नही चलाया जाता। परीक्षा में कई छात्र अपने अंक के आधार पर 11वी कक्षा में गणित ले लेते है और यहां गणित का नया संसार देख परेशान हो जाते है। शिक्षक को यह समझ नही आता कि ऐसे समय मे वो प्राथमिक और माध्यमिक स्तर की जानकारी साझा करें या उच्च माध्यमिक स्तर की।

भिन्न क्षमता वाले छात्रों का एक कक्षा में होना

समग्र शिक्षा एक अच्छी पहल है पर जब एक ही कक्षा में बेहद कमजोर , मध्यम और उच्च ज्ञान वाले छात्र मौजूद हों तो एक शिक्षक अपनी वास्तविक गणितीय क्षमता को भूल जाता है। दिल्ली सरकार ने कक्षा 6 से 8 तक यह प्रयोग अवश्य किया जिसमे छात्रों को कक्षा 6 से योग्यता के हिसाब से निष्ठा और प्रतिभा में बाँट दिया अब इसका नुकसान ये हुआ की सारे कमजोर छात्र एक जगह हो गए कक्षा का वातावरण विविधतापूण नहीं रह गया,जिसका लाभ भी बाकी बच्चों को मिलता था। वहीं दूसरी ओर कक्षा में डिस्लेक्सिया या अन्य शारीरिक अक्षमताओं वाले छात्र भी सामान्य छात्रों के साथ पढ़ते है जिस कारण एक शिक्षक का दायित्व सिर्फ कक्षा में पढाना नही बल्कि प्रत्येक छात्रों की जरूरत का ध्यान रखना है क्योंकि छात्रों की सुरक्षा भी एक मुद्दा है।

परीक्षा एक बाधा

परीक्षा छात्रों के समग्र मूल्याकन के लिए आवश्यक है पर आजकल यूनिट टेस्ट, क्लास टेस्ट, साप्ताहिक टेस्ट, सेमेस्टर और वार्षिक जैसे कई परीक्षाओं का अंबार लग गया है जिसमे शिक्षकों को सभी परीक्षा संवंधित रिकॉर्ड भी संग्रह करना होता है। इसके साथ ही कक्षा के पाठ्यक्रम को पूरा करना भी एक जिम्मेदारी होती है। परेशानी तब और बढ़ जाती है जब परीक्षा में पूछे गये प्रश्नों का स्तर छात्रों के हित को ध्यान में रखकर नही बनाया जाता है। प्रश्नपत्र बनाने वाले शिक्षक एक ही प्रश्न में कभी कभी अपनी सारी योग्यता इस कदर डाल देता है की छात्र प्रश्नों को हल करने में डरते है और इसका दुष्परिणाम ये होता है की गणित विषय में छात्र खुद को ठगा महसूस करते हैं।

शिक्षकों की उदासीनता

गणित के प्रति छात्र ही नही शिक्षकों में भी उदासीनता है। हमारा सिस्टम ही कुछ ऐसा है जिसमे शिक्षकों की योग्यता उसके कक्षा के पास बच्चों से निकाली जाती है। गणित एक गूढ़ विषय है परन्तु अपने गोपनीय रिपोर्ट में अपने रिजल्ट में पास छात्रों की सख्या दिखाने के चक्कर में सिर्फ उन्ही पाठ्य बिंदुओं पर ध्यान केन्द्रित हो जाता है जो छात्रों को 33% अंक दिलाने में कारगर हो और इस चक्कर में गणित पढ़ाने के प्रति असली दायित्व से लोग मुंह मोड़ लेते हैं।

प्रशिक्षण की स्थिति

नये पाठ्यक्रम लाने के बाद शिक्षकों को प्रशिक्षण दिया जाता है जिससे कक्षा में उचित ज्ञान संप्रेषित हो। पर मेरा निजी अनुभव कुछ अच्छा नहीं है। प्रशिक्षण देने वाले अधिकांश प्रशिक्षक एक खानापूर्ति जैसे कार्यों में लगे रहते हैं। उन्हें खुद प्रशिक्षण देने का उतना अनुभव नही होता या फिर तैयारी वाले पक्ष पर ज्यादा काम नहीं होता है इसके कारण प्रशिक्षण की गुणवत्ता प्रभावित होती है। कक्षा में पढाना एक दुरह कार्य है और इसको एक प्रशिक्षित ट्रेनर के द्वारा ही संपन्न किया जाना आवश्यक है , साथ ही सरकारों की यह ध्यान देने की आवश्यकता है की शिक्षक शिक्षा का एक महत्वपूर्ण स्तम्भ हैं और पाठ्यक्रम बनाने में इनकी सहभागिता आवश्यक है। प्राथमिक स्तर पर जहाँ गणित का आधार बनता है वहां एक प्रशिक्षित अध्यापक जिन्हें विषय में जानकारी हो की नियुक्ति होनी चाहिए।

इसके साथ कक्षा को आधुनिक बनाने और गणितीय सॉफ्टवेयर के प्रयोग और अन्वेषी शिक्षा हेतु प्रयास करने पर जोर देने की आवश्यकता है। रिजल्ट बनाने के चक्कर में अनुदान अंक द्वारा छात्रों को पास करने मात्र से हम अपेक्षित परिणामों को हासिल नहीं कर सकेंगे।

गणित में नए नए तकनीक पर ध्यान देने की आवश्यकता है और साथ ही शिक्षको को एक आजादी देने की आवश्यकता है जिससे वे कक्षा में शिक्षण का कार्य समुचित रूप से कर सकें जिसमे सरकार, समाज और छात्रों की सहभागिता बेहद आवश्यक है। कक्षा का वातावरण ऐसा हो जहाँ सीखने की लालसा हो , पाठ्यपुस्तकें ऐसी हों जिसे देख छात्र-छात्राएं उत्साहित हों और शिक्षक ऐसे हों जो गणित की नीरसता में भी प्राण फूंक सकें। इस विषय के शिक्षण के जीवंत बना सकें और बच्चों के रोज़मर्रा की ज़िंदगी से जोड़ सकें।

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(लेखक परिचयः डॉ राजेश कुमार ठाकुर वर्तमान में राजकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय , रोहिणी , सेक्टर 16 दिल्ली -110089 में बतौर शिक्षक काम कर रहे हैं। 60 पुस्तकें , 500 गणितीय लेख, 400 से अधिक ब्लॉग व 10 रिसर्च पेपर प्रकाशित। 300 से अधिक विद्यालयों में शिक्षक-प्रशिक्षण का अनुभव। इस लेख के संदर्भ में आपके विचार और अनुभव क्या है, टिप्पणी लिखकर बताएं)

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