Wednesday, August 9, 2023

क्या दो समानांतर रेखाएं अनंत पर मिल सकती हैं ?

 

क्या दो समानांतर रेखाएं अनंत पर मिल सकती हैं ?

अनंत , अपरिमित जैसे शब्द आम बोल चाल में जितना प्रभावशील है गणित में यह उतना ही अधिक उलझन पैदा करने वाला शब्द प्रतीत होता है. भौतिकी (फिजिक्स) में आपने पढ़ा होगा – अवतल दर्पण में जब वस्तु को फोकस पर रखा जाता है तो प्रतिबिम्ब अनंत पर बनती है जो अत्यधिक आवर्धित , वास्तविक और उलटी होती है. पर सवाल है कि क्या प्रतिबिम्ब अनंत पर मिलेगी?











जब रेखाएं समानांतर हो तो क्या ये रेखाएं आपस में अनंत पर मिलेंगी? आज इस अंक में हम इसी विषय पर चर्चा करेंगे? ज्यामिति के जनक – युक्लिड के अनुसार दो समानांतर रेखाएं आपस में कभी भी नहीं मिलेंगी चाहे इसे कितना भी बढाया जाये. इस हिसाब से अनंत पर रेखाओं के मिलने कि बात ही एक कल्पना लगती है.  दो रेखाओं के समानांतर होने के लिए कुछेक शर्ते है जिनमे दोनों रेखाओं के बीच कि लंबवत दुरी हर जगह समान होना एक है,  चाहे रेखा को कितना भी बढाया जाये. साथ ही दो समानांतर रेखाओं के बीच का आन्तरिक कोण हमेशा 180 अंश का होना आवश्यक है. युक्लिड ने अपनी पुस्तक एलिमेंट में ज्यामिति के कई अभिधारणा और अभिगृहीत दिए हैं, इनमे पांचवा अभिधारणा को समानांतर रेखा कि अभिधारणा माना जाता है. इसके अनुसार – यदि एक सीधी रेखा दो सीधी रेखाओं पर गिर कर अपने एक ही ओर दो अन्तःकोण इस प्रकार बनाये कि इन दोनों कोणों का योग मिलकर दो समकोणों से कम हो, तो वे दोनों सीधी रेखाएं अनिश्चित रूप से बढ़ाये जाने पर उस ओर मिलती है जिस ओर योग दो समकोण से कम होता है.

इस हिसाब से दो रेखाएं अनंत पर तब मिलेंगी जब वो समानांतर होने कि शर्ते पूरी ना करें और अगर ऐसा है तो यह निश्चित हो गया कि समानांतर रेखाएं आपस में कभी नहीं मिलेंगी. ये सभी बातें सिर्फ युक्लिड ज्यामिति के लिए सही है. युक्लिड द्वारा प्रतिपादित पहले चार अभिधारणा सामान्य हैं जबकि पांचवा थोडा जटिल. यदि पांचवे को दरकिनार कर दिया जाये तो यह माना जा सकता है कि समानांतर रेखा भी आपस में मिलती है और इस प्रकार गैर- युक्लिड ज्यामिति का जन्म हुआ. यूक्लिड कि पुस्तक एलिमेंट के खंड 1 में 23 वा परिभाषा समानांतर रेखा को लेकर है.


साधारण ज्यामिति जो हम प्रयोग करते हैं में, समानांतर रेखा के अनंत पर मिलने का कोई सवाल ही नहीं है पर एक अन्य प्रकार कि ज्यामिति है जिसे हम प्रोजेक्टिव ज्योमेट्री कहते हैं का प्रयोग – अनंत पर मिलने वाले बिन्दुओं के अध्ययन के लिए किया गया. प्रोजेक्टिव ज्यामिति पॉल डिराक के क्वांटम यांत्रिकी के आविष्कार के लिए महत्वपूर्ण साबित हुई.  कल्पना कीजिए कि आप साधारण यूक्लिडियन तल पर खड़े हैं. आपका सिर तल से लगभग 2 मीटर ऊपर है, इसलिए जब आप नीचे देखते हैं तो तल पर खींची हर रेखा आपको क्षितिज तक फैला हुआ दिखता है. यह एक सामान्य अनुभव है कि यदि हम एक तल पर अनंत समानांतर रेखाओं को खींचते हैं, जिन्हें  हम उन्हें तल के ऊपर एक बिंदु से देखते हैं, तो ऐसा प्रतीत होगा कि वे क्षितिज पर मिलते हैं. यहाँ नीचे आपको तीन चित्र दिखाई दे रहे हैं जो क्रमशः यूक्लीडियन, दीर्घवृत तथा अतिपरवलय ज्यामिति को दर्शाता है. समानांतर अभिधारणा सिर्फ यूक्लिडियन ज्यामिति मॉडल को ही संतुष्ट करता है जबकि अन्य में रेखाएं समानांतर होने के बाबजूद अनंत पर मिल जाती हैं.

इतिहास के झरोखे से :- गणित के राजकुमार कहे जाने वाले गॉस ने ही सर्वप्रथम – गैर यूक्लीडियन ज्यामिति शब्द को गढ़ने का काम किया. रुसी गणितज्ञ निकोलाई इवानोविच लोबाचेवस्की ने 1829-30 में तथा हंगरियन गणितज्ञ बोल्याई ने 1832 में अति परवलय ज्यामिति कि खोज स्वतंत्र रूप में की. रिमान ने 1854 इसवी में रीमन ज्यामिति नामक गणित के रूप में एक नए आयाम कि स्थापना की.



No comments:

Post a Comment

गणित और रामायण

पढ़कर आप अपनी प्रतिक्रिया नीचे दिए कमेंट में जरुर दें . अपना नाम लिखना ना भूले