Wednesday, October 4, 2023

गणित के सर्वोतम ग्रन्थ में लेखक द्वारा ईश् नमन

प्रस्तुत लेख लिखने का आशय सिर्फ उन हुतात्माओं को यह बताने और समझाने का प्रयास मात्र हैं कि किसी शुभ कार्य को करने के पूर्व ईश्वर कि आराधना करना एक सनातन परम्परा है | प्रत्येक धर्म को मानने वाले अपने इष्ट कि आराधना शुभ कार्य के पूर्व करते रहें हैं और इसमें कोई परेशानी या शर्म महसूस करने कि आवश्यकता नहीं है|

आजकल कुछ पढ़े लिखे तथाकथित हिंदूवादी किसी वैज्ञानिक के द्वारा शुभ कार्य के पूर्व मंदिर जाने को ढोंग बताने का प्रयास करते हैं जो कतई अच्छा नहीं है. अपनी परम्परा और धर्म के प्रति आस्था रखना और ईष्ट कि पूजा एक संस्कार को दिखाता है ; जो एक गर्व का विषय है.

यहाँ प्राचीन समय में लिखे गणितीय ग्रंथो में लेखकों द्वारा ईश पूजा उनकी भक्ति को दिखाता है और शुभ कार्य के पूर्व ईश्वर से आशीर्वाद लेना महानता को दर्शाता है. ये सारे ग्रन्थ जिनका यहाँ वर्णन है आज से हजारों वर्ष पूर्व लिखी गयी है.

कुछेक संस्कृत श्लोंकों का अनुवाद करने में मेरे अग्रज श्री सत्येन्द्र सत्यार्थीश्री हरिओम आकाश व मेरे मित्र श्री अतुल गर्ग का सहयोग रहा उनका आभार .


आचार्य पिंगल – छंदशास्त्र के रचियता (200 ईसा पूर्व)

अनादिनिधनं ब्रह्म प्रणम्य विघ्न – नाशकं

व्याख्या पिंगल सूत्रस्य क्रियते प्रीतये बुधाम

आदि और अंत से रहित, विध्नो के नाशक , ब्रह्म को नमस्कार करके विद्वानों कि प्रीत के लिए इस पिंगल सूत्र कि व्याख्या कि जा रही है .  --- 

आचार्य पिंगल द्वारा रचित छंद शास्त्र में सबसे पहले शून्य को परिभाषित किया गया है. इसी पुस्तक में द्विआधारी पद्धति और मेरु प्रस्तार जिसे पास्कल त्रिभुज के नाम से जानते हैं का उल्लेख मिलता है .

भास्कराचार्य – लीलावती (1150 ईस्वी)

प्रीति: भक्तजनस्य यो जनयते विघ्नं विनिघ्नत्

स्मृतस्तं वृन्दारकवृन्दवन्दितपदम् नत्वा मतंगाननम्

पाटीं सदगणितस्य वच्मि चतुर- प्रीतिप्रदां प्रस्फटां

संक्षिप्ताक्षरकोमलामलपदैर्लालित्य-  लीलावतीम्

भक्तजन की प्रीति को जो  उत्पन्न करते हैं जो स्मरण करते ही विध्नो का नाश करते हैं, ऐसे देवताओं के गणों से सेवित पदवाले श्री गणेशजी को नमस्कार करके चत्रुरों को प्रीति देनेवाली. स्फुटलालित्य से भरी, अच्छे  गणित की पाटी लीलावती को कहता हूँ . --- 

लीलावती पुस्तक में गणित और खगोल शास्त्र पर ढेरों प्रश्न हैं . अपनी पुत्री लीलावती को संबोधित करते हुए भास्कराचार्य ने प्रकृति के साथ प्रश्नों को जोड़ने का प्रयास किया है . इसमें 625 श्लोक है और बीजगणित, अंकगणित तथा ज्यामिति के ढेरो प्रश्न हैं .

 श्रीधराचार्य – त्रिशतिका (750 ईस्वी)

नत्वा शिवं स्वविरचितपाट्या गणितस्य सारमुद्घृत्य

लोकव्यवहाराय प्रवक्ष्यति श्रीधराचार्य:

शिव को नमस्कार करके स्वविरचित पाटी गणित से गणित के सार  को उधृत करते हुए श्रीधराचार्य लोकव्यव्हार के लिए उसे निरुपित करेंगे  --- 

त्रिशतिका - तीन सौ श्लोको का एक गणितीय ग्रन्थ है जो मूलतः अंकगणित  और क्षेत्र-व्यवहार से संबंधित हैं. इसी पुस्तक में सबसे पहले द्विघात समीकरण के  मूल निकालने कि विधि दी है जो आज वर्तमान समय में हम प्रयोग करते हैं.

महावीराचार्य --- गणित सार संग्रह (9 वी शदी )

अलङ्ध्यम त्रिजगत्सारं यस्यानन्त चतुष्टयमं

नमस्तस्मै जिनेन्द्राय महावीराय तायिने |

संख्याज्ञान प्रदीपेन जैनेंद्रेण महात्विषा

प्रकाशितं जगत्सर्वं येन तं प्रणमाम्यह्म ||

जिनों के स्वामी, (विश्वासियों के) रक्षक महावीर को नमस्कार, जिनके चार अनंत गुण, जो (सभी) तीनों लोकों में सम्मानित होने के योग्य हैं, अकाट्य (उत्कृष्टता में) हैं। जिनों के उस परम यशस्वी प्रभु को मैं नमन करता हूँ, जिनके द्वारा संख्याओं के ज्ञान का चमकता दीपक बनकर सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड को चमकाया गया है। --- 

महावीर ने अपनी पुस्तक में उन  विषयों की व्याख्या की, जिन पर  आर्यभट और ब्रह्मगुप्त ने विरोध किया था, लेकिन उन्होंने उन्हें और अधिक स्पष्ट रूप से व्यक्त किया। उनका काम बीजगणित के लिए एक अत्यधिक समन्वित दृष्टिकोण है और उनके अधिकांश पाठों में बीजीय समस्याओं को हल करने के लिए आवश्यक तकनीकों को विकसित करने पर जोर दिया गया है।  समबाहु, समद्विबाहु त्रिभुज, समचतुर्भुज; वृत्त और अर्धवृत्त जैसी अवधारणाओं के लिए  शब्दावली की स्थापना के कारण उन्हें भारतीय गणितज्ञों के बीच अत्यधिक सम्मानित किया जाता है. इस पुस्तक में क्रमचय और संचय (permutation / combination) , भिन्न , पुष्पमाल संख्या (palindrome number) के बारे में विस्तार से लिखा है. 

सूर्य सिद्धांत (छठी शदी के आसपास)

अचिन्त्याव्यक्तरूपाय निर्गुणाय गुणात्मने ।

समस्तजगदाधार-मूर्तये ब्रह्मणे नमः ॥ 

यत् स्मृत्याभीष्टकार्यस्य निर्विघ्नां सिद्धिमेष्यति ।

नरस्तं बुद्धिदं वन्दे वक्रतुण्डं शिवोद्भवम् ॥ 

जो अचिंत्य है, अव्यक्त है, निर्गुण है, आत्मा का गुण है, समस्त मूर्त जगत का आधार है ; उस ब्रह्म को नमन है। 

 जिसे स्मरण करके मनुष्य की अभीष्ट कार्यों की सिद्धि होती है, ऐसे शिव के पुत्र, बुद्धि प्रदान करने वाले, वक्रतुंड (गणपति) को मैं नमन करता हूं।

सूर्यसिद्धांत खगोल का एक ग्रन्थ है जिसकी रचना का समय ईसा पूर्व है परन्तु इसकी रचना का ठीक समय नहीं ज्ञात है. त्रिकोणमिति और ज्या सारिणी कि सटीक जानकारी इसी पुस्तक में मिलती है . आर्यभट ने ज्या सारिणी संभवतः इसी पुस्तक से सीखा. सूर्यसिद्धान्त में वर्णित ज्या और कोटिज्या आधुनिक  sine और cosine है । इतना ही नहीं, सूर्यसिद्धान्त के तृतीय अध्याय (त्रिप्रश्नाधिकारः) में ही सबसे पहले स्पर्शज्या (tangent) और व्युकोज्या (secant) का प्रयोग हुआ है। 

 आर्यभट - आर्यभटीय (499 इसवी)

प्रणिपत्यैकमनेकम कं सत्या देवताम् परम ब्रह्म                   

आर्यभटस्त्रीणि गदति गणितं काल क्रियां गोलम् 

भगवान ब्रह्मा को प्रणाम करने के बाद – जो एक और कई हैं -वास्तविक देवता, परम ब्रह्म . आर्यभट्ट तीन अर्थात् गणित, समय की गणना (काल क्रिया) और खगोलीय क्षेत्र (गोला) को निर्धारित करते हैं।

आर्यभट द्वारा 23 वर्ष कि अवस्था में लिखे यह ग्रन्थ आर्यभटीय गणित , खगोल का सर्वोतम ग्रन्थ है जिसमे चार अध्याय इस प्रकार हैं :-

1. दशगीतिका-पाद - इसमें  केवल 13 श्लोक है. 

2. गणित-पाद - खगोलीय  अचर (astronomical constants) तथा ज्या-सारणी (sine table) ; गणनाओं के लिये आवश्यक गणित 

3. काल-क्रिया-पाद - समय-विभाजन तथा ग्रहों की स्थिति की गणना के लिये नियम

4. गोल-पाद - त्रिकोणमितिय  समस्याओं के हल के लिये नियम; ग्रहण  की गणना

 ब्रह्मगुप्त कि पुस्तक ब्रह्मस्फुट सिद्धांत (628 इसवी )

जयति प्रणतसुरासुरकिरीट रत्न प्रभाछुरितपादः

कर्ता जग्दुत्पत्तिस्थितिविलयानां महादेवः ||

ब्रह्मणोक्तं ग्रहगणितं महता कालेन यत खिलीभूतं

अभिधीयते स्फुटम् तज्जिष्णुसुतब्रह्मगुप्तेन ||

संसार के उत्पत्ति और संहार के कर्ता महादेव , जिनके पैर प्रणाम करने के समय  देवता और असुरों के मुकुट में लगे हुए रत्न की कांति से सुशोभित होते हैं, वे सर्वोत्कृष्ट और सर्वदा विजयी हैं |

ब्रह्मा के द्वारा बताया गया ग्रह गणित जो बहुत समय के बाद संसार को प्राप्त हुआ वह जिष्णुपुत्र ब्रह्म गुप्त के द्वारा विस्तार पूर्वक बताया जा रहा है। 

शून्य पर संक्रिया का विस्तार पूर्वक उल्लेख ब्रह्म स्फुट सिद्धांत में है. 25 अध्यायों में विभक्त यह ग्रन्थ गणित में महत्वपूर्ण है. इस  ग्रन्थ में अन्य बातों के अलावा गणित के निम्नलिखित विषय वर्णित हैं-

  • शून्कीय  गणितीय भूमिका की अच्छी समझ है;
  • धनात्मक और ऋणात्मक दोनो प्रकार की संख्याओं के साथ गणितीय संक्रियाएँ करने के नियम दिए गये हैं;
  • वर्गमूल  निकालने की एक विधि;
  • रैखिक समीकरण तथा कुछ वर्ग समीकरणों  के हल करने की विधियाँ मौजूद हैं 

----- अभी लेख जारी है  ----

डॉ राजेश कुमार ठाकुर 

 


3 comments:

  1. अतिविशिष्ट sir

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    1. राजेश ठाकुरOctober 4, 2023 at 10:12 AM

      अपना परिचय अवश्य लिखा करें।
      पढ़ने के लिए धन्यवाद

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गणित और रामायण

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