क्या आप जानते हैं ?
पिछले
अंक में नारद पुराण में वर्णित योग, घटा, गुणा, भाग, वर्ग, वर्गमूल , घन और घनमूल की चर्चा आपने पढ़ी होगी
. इसी क्रम को आगे बढ़ाते हुए आज कुछ नई जानकारी आपसे साझा करते हैं. नारद महापुराण
में गणित के इन 8 मुख्य संक्रियाओं के अलावा भी कई महत्वपूर्ण गणितीय विधियों के
बारे में जानकारी उपलब्ध है बस आज इन्हीं कुछेक बिन्दुओं पर चर्चा करते हैं - -
अन्योन्यहारनिड़ती हरांशी तु समच्तिदा ॥ २१॥ लवा
लवघ्ना हरा हरघ्ना हि सवर्णनम् । भागाभागे विज्ञेयं मुने शास्त्रार्थचिन्तकैः ॥ २२
॥ अनुवन्धेऽपवाहे चैकस्य चेदधिकोनकः । भागास्तलस्थहारेण हारं स्वांशाधिकेन तान् ॥
२३ ॥ ऊनेन चापि गुणयेद्धनर्णं चिन्तयेत् तथा । कार्यस्तुल्यहरांशानां
योगश्चाप्यन्तरो मुने ॥ २४ ॥ अहारराशौ रूपं तु कल्पयेद्धरमप्यथ ।
अंशाहतिश्छेदघातहद्भित्रगुणने फलम् ॥ २५ ॥ छेदं चापि लवं विद्वन् परिवर्त्य हरस्य
च । शेषः कार्यों भागहारे कर्तव्यो गुणनाविधिः ॥ २६ ॥
उपरोक्त श्लोक में भिन्न को जोड़ने और घटाने की विधि का
उल्लेख है. यदि किसी भिन्न को जोड़ना हो तो सबसे पहले किसी निश्चित संख्या से अंश
और हर में गुणा करके भिन्न का हर बराबर करें और फिर इन्हें जोड़े या घटाएं .
भिन्नों को जोड़ने की इस प्रक्रिया को भागानुबंध तथा घटाने की प्रक्रिया को
भागापवाह कहते हैं.
उदाहरण :-
यही नहीं यदि किसी भिन्न के हर में कोई संख्या ना लिखी हो तो
उसे 1 मानकर संक्रिया करने की सलाह इस श्लोक में दी गयी है. साथ ही दो भिन्नों के
गुणनफल के लिए इनके अंश को अंश के साथ तथा हर को हर के साथ गुणा करने पर अभीष्ट
परिणाम आता है. इसी प्रकार यदि भिन्न के बीच भाग की प्रक्रिया अपनानी हो तो पहले
भिन्न के अंश और दुसरे भिन्न के हर को आपस में गुणा करके अंश की जगह और पहले भिन्न
के हर को दुसरे भिन्न के अंश से गुणा करके हर की जगह रखने से भाग संपन्न होता है .
तथा
होगा
भिन्न को वर्ग करने के लिए
अंश और हर को परस्पर वर्ग करें साथ ही घन करने के लिए अंश को स्वयं से 3 बार तथा
हर को भी स्वयं से तीन बार गुणा करें अभीष्ट परिणाम प्राप्त होगा.
हरांशयोः कृती वर्गे घनौ घनविधी मुने। पदसिद्धयै पदे
कुर्यादयो खं सर्वतश्च खम् ॥ २७ ॥
तथा
नारद
पुराण में अंकगणित के अलावा बीजगणित के कई नियम दिए गये हैं. जिनमे अज्ञात संख्या
को निकालने का तरीका भी दिया गया है. सबसे मजेदार बात यह है की यदि किसी दो संख्या
का योग और इनका अंतर दे रखा हो तो संख्या निकालने का तरीका भी दे रखा है.
योगोऽन्तरेणोनयुतऽधितो राशी तु संक्रमे । राश्यन्तरहृतं वर्गान्तरं
योगस्ततश्च तौ ॥ ३१
यदि दो संख्या का योग और अंतर ज्ञात हो तो योग के लिए संख्या को दो
बार लिखकर परिणाम को आधा करें तो पहली संख्या प्राप्त होगी और यदि दोनों दी गयी
संख्या को अंतर करके आधा करने से दूसरी संख्या प्राप्त होती है. उदाहरण के लिए यदि दो संख्या का योग 101 तथा
अंतर 25 है तो संख्या ज्ञात करें. इन दोनों संख्या को योग करके आधा करने से पहली
संख्या प्राप्त होती है. पहली
संख्या = तथा
दूसरी संख्या के लिए इन्हें घटाकर आधा करना पड़ेगा . दूसरी संख्या =
यही
नहीं इस पुस्तक में त्रैराशिक नियम , द्विघात समीकरण , साधारण समीकरण पर आधारित कई
प्रश्नों को हल करने सम्बंधित श्लोक मिलते हैं जिसका उपयोग गणित को समझने और और
सुंदर बनाने में उपयोग करने की आवश्यकता है.
डॉ
राजेश कुमार ठाकुर
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