क्या
आप जानते हैं ?
वेद और पुराण में गणित
के बारे में कई बातें लिखी गयीं है. वेद तो प्राचीनतम ग्रंथों में से एक है पर
पुराण की रचना बाद में हुई . पुराणों में धार्मिक स्थलों,
पूजा की विधि, ईश्वरीय महात्म्य के अलावा
गणित, खगोल और विज्ञान के रहस्य भी
भरे पड़े हैं . महाभारत के रचनाकार महर्षि वेदव्यास जी ने सिर्फ एक पुराण – विष्णु
पुराण लिखी जो कालान्तर में अलग- अलग ऋषियों द्वारा लिखी गयी और अंततः 18 पुराण आज
उपलव्ध हैं. आज हम इन्ही पुराणों में से एक – नारद पुराण की चर्चा करेंगे और इसमें
आधारित गणितीय संकल्पनाओं पर प्रकाश डालेंगे. नारद पुराण ज्यादा पुराना हो ऐसा
प्रतीत नहीं होता परन्तु इनके श्लोकों को देखने से यह जरुर ज्ञात होता है की इसकी
रचना 9 वीं शदी के बाद हुई होगी. खैर मूल प्रश्न पर आते हैं. नारद पुराण में गणित
त्रिस्कन्धं ज्यौतिषं शास्त्रं चतुर्लक्षमुदाहृतम् ।
गणितं जातकं विप्र संहितास्कन्धसंज्ञितम् ॥ २
गणिते परिकर्माणि खगमध्यस्फुटक्रिये ।
अनुयोगश्चन्द्रसूर्यग्रहणं चोदयास्तकम् ॥३
छाया भृङ्गोन्नतियुती पातसाधनमीरितम्।
अर्थात
ज्योतिषशास्त्र में चार लाख श्लोक हैं जिसे तीन स्कंध – गणित , जातक और संहिता में
व्यक्त किया गया है. गणित में परिकर्म , ग्रह , देश,
दिशा और काल का ज्ञान, सूर्य और चंद्रग्रहण,
सूर्यास्त और सूर्यउदय के बारे में ज्ञान मिलता है. यहाँ गणित के परिकर्म की बात
करें तो ये आधुनिक गणित के 8 मौलिक गणितीय संक्रिया – जोड़,
घटा, गुणा,
भाग, वर्ग,
वर्गमूल, घन तथा घनमूल को 8 परिकर्म
माना गया है. नारद पुराण में दाशमिक
प्रणाली में संख्याओं को लिखने और उसके नामकरण के बारे में भी भरपूर चर्चा आपको
मिलेगी जो वेदों में दाशमिक प्रणाली से लिखी संख्या के समरूप हैं. इसकी एक बानगी
निम्न श्लोक में दिखती है ---
एकं दश शतं चैव सहस्रायुतलक्षकम् ॥ १२ ॥ प्रयुतं कोटिसंज्ञा
चार्बुदमब्जं च खर्वकम्। निखर्वं च महापद्यं शङ्कुर्जलधिरेव च ॥१३॥ अन्त्यं मध्यं
परार्द्ध च संज्ञा दशगुणोत्तराः । क्रमादुत्क्रमतो वापि योगः कार्योऽन्तरं तथा ॥
१४ | हन्यागुणेन गुण्यं स्यात् तेनैवोपान्तिमादिकान्। | शुद्धयेद्धरो यद्गुणश्च
भाज्यान्त्यात् तत्फलं मुने ॥ १५
इस
श्लोक में भी ऋग्वेद की तरह संख्या को 10 के घात में लिखने का नियम और उसके परस्पर
नामकरण हैं. यहाँ भी एक, दश,
सौ, सहस्र(1000). अयुत(10000). लक्ष (100000),
प्रयुत (10 लाख), कोटि (करोड़), अर्बुद (दश करोड़), अब्ज (अरब), खर्व(दस अरब),
निखर्व (खर्ब), महापद्म (10 खर्ब),शंकु . जलधि, अन्त्य, मध्य, परार्ध (10 की घात
17) तक की संख्या का वर्णन है. साथ ही इन्हें योग या अंतर करने के लिए दाई से बायीं ओर बढ़ते हुए करना चाहिए. गुणा के
लिए गुण्य के अंतिम अंक को गुणक से फिर उसके पार्श्ववर्ती अंक को उसी गुणक से गुणा
करना आवश्यक है , इसी तरह आदि अंक तक गुणन करने पर गुणनफल प्राप्त होता है. भाग के
लिए जितने अंक से भाजक को गुणा करने पर गुणनफल भाज्य में घट जाये वही अंक भागफल होता है,
ऐसा इस श्लोक में बताया गया है.
समाङ्ख्यातो वर्ग:
स्यात् तमेवाहुः कृतिं बुधाः
समयङ्कहतिः प्रोक्तो
घनस्तत्र विधिः पदे ॥ १८ ॥
इसके
अलावा नारद पुराण में किसी संख्या को उसी संख्या से दो बार गुणा करने पर वर्ग की
प्राप्ति होती है और विद्वान लोग उसे कृति कहते हैं ऐसा बताया गया है. साथ ही समान
अंक को तीन बार गुणा करने पर घन की प्राप्ति होती है. नारद पुराण में इसके अलावा
वर्गमूल और घनमूल के जो तरीके बताये गये हैं वो आधुनिक तरीके से मेल खाते हैं.
घनमूल ज्ञात करने की विधि का पहला प्रमाण आर्यभट की पुस्तक आर्यभटीय में दिखता है
अघनाद् भजेद् द्वितीयात् त्रिगुणेन घनस्य मूलवर्गेण ।
वर्गस्त्रिपर्वगुणितः शोध्यः प्रथमाद घनश्च घनात् ||
इसके
अलावा भिन्न पर आधारित कई संक्रियाओं पर चर्चा नारद पुराण में मिलते हैं जिसपर
अगले अंक में बात करेंगे. यहाँ सिर्फ मेरा उद्देश्य भारतीय धार्मिक ग्रंथों में
गणित के रहस्यों का उद्घाटन मात्र था.
डॉ
राजेश कुमार ठाकुर
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