ऐसा क्यों होता है - 1?
इस
श्रृंखला में हम गणित के ऐसे प्रश्नों पर चर्चा करेंगे जिसके बारे में आप जानना तो
चाह रहे थे पर उत्तर ना मिलने के कारण आपने इसे मान लिया कि ऐसा तो होगा ही. इसी
गुत्थी को सुलझाने का यह मेरा प्रयास अगर आपको पसंद आये तो आप भी अपने प्रश्न के
साथ तैयार रहिये.
ऋणात्मक संख्या को काले रंग और धनात्मक संख्या को लाल रंग
से लिखने का प्रयास चीनियों द्वारा 200 ईसा पूर्व हुआ पर सातवीं शदी के पूर्व भारत
में इसका प्रयोग नहीं दिखता. ब्रह्मगुप्त ने 620 इसवी में सबसे पहली बार ऋणात्मक
संख्या कि बात अपनी पुस्तक ब्रह्मस्फुट सिद्धांत में की. यूरोपियन देशों में 15 वी
शदी के पूर्व तक ऋणात्मक पर अच्छी समझ नहीं थी पर मजेदार काम अंग्रेज गणितज्ञ जॉन
वालिस ने कि जिन्होंने संख्या रेखा के अविष्कार द्वारा इसे प्रयोग पर लाकर विश्व
में इसे पहचान दिलाई.आपने बीजगणित के आरम्भ में दो ऋणात्मक संख्याओं के गुणा से
धनात्मक कि बात तो पढ़ी ही होगी , अब इसे आगे बढ़ाते है और इसके गणितीय प्रमाण और
उदाहरण पर चर्चा करते हैं. मान लीजिये आपके
पास 10 रूपये हैं , अर्थात आपके पास + 10 है. अब आपने इन पैसे से टॉफ़ी ले ली
अर्थात खर्च कर दिए , मतलब आपके द्वारा खर्च धन (-10) है. इसका अर्थ ये हुआ कि
आपके पास बचा धन 0 है. गणित में इसे 10 – 10 = 0 कह सकते हैं. अर्थात किसी राशि
में उसके ऋणात्मक राशि को जोड़ने से आपको शून्य मिलता है. गणित में इसे योग तत्समक
कहते हैं. A + (- A) = 0
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कल्पना कीजिये कि आप एक सडक पर खड़े हैं और पूर्व दिशा कि ओर
चलने को अगर धनात्मक मान लें तो पश्चिम दिशा कि ओर जाना ऋणात्मक होगा. इसी तरह
पूर्व कि ओर 60 किमी/घ से चलने वाली कार + 60 किमी/घ और पश्चिम कि ओर 60 किमी/घ से
चलने वाली कार (-60) किमी/घ निरुपित करती है. अर्थात 1 घंटे में पूर्व कि ओर (+1) ×(+60)
= 60किमी तथा पश्चिम कि ओर (+1) ×(-60) = -60 किमी. अब कल्पना कीजिये कि एक कार जो
60 किमी/घ कि चाल से पश्चिम दिशा कि ओर चल रही है तो यह कार 1 घंटे पूर्व कहाँ थी? यहाँ चाल = -60 है और समय = (-1) है. आप
अनुमान लगा सकते हैं कि कार 1 घंटे पूर्व 60 किमी पूर्व दिशा में होगी अर्थात (-1)×
(-60) = +60
डॉ राजेश कुमार ठाकुर
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