Saturday, July 15, 2023

गणितीय राज खोलती कटपयादि संख्या

 

गणितीय राज खोलती कटपयादि संख्या

कल्पना कीजिये जब लोगों को गिनती नहीं आती थी या जब गिनती के लिए अंको का प्रयोग नहीं होता था, क्या उस समय लोगों के बीच संख्या के निरूपण के लिए कोई विधि मौजूद नहीं थी ? वेदों में तो बड़ी-बड़ी संख्याओं का वर्णन मिलता है पर क्या ऐसा कोई गणितीय पद्धति विश्व या भारत में पनप चूका था जिसकी मदद से संख्याओं को लिखना संभव रहा हो.

अरे, आप किस सोच में डूब गये ?

गणित में ऐसी कई संख्या पद्धति हमारे देश भारत में ही जन्म ले चुकी थीं जिनकी मदद से संख्याओं को लिखना आसान था. जिनमे कटपय , भूत संख्या और वर्णाक्षर पद्धति प्रमुख रहीं. ये सब पद्धति अलग- अलग काल खंडो में विकसित होती रहीं और इसे आप कूट भाषा कि तरह भी इस्तेमाल कर सकते है. इस अंक में हम कटपयादि पर ही विचार करेंगे. ताजा रिसर्च कि बात करें तो क-ट -प-य का आधार सामवेद से होना बताया जाता है. जैमिनी और वरुची ने इस पद्धति को आगे बढ़ाने का काम किया. ऐसे तो दक्षिण भारत के केरल राज्य में कई ग्रंथो में इसका प्रयोग आसानी से आपको दिख जायेगा. वरुची कि पुस्तक चन्द्र वाक्यानि जिसका काल चौथी शदी ईशा पूर्व बताया जाता है को इस पद्धति का महत्वपूर्ण ग्रन्थ माना जाता है. सबसे पहले इस अंक पद्धति के नियम के बारे में बात करें.

शंकरवर्मन ने कटपय पद्धति के कुछ नियम इस प्रकार बताएं हैं

नञावचश्च शून्यानि संख्या: कटपयादय:।
मिश्रे तूपान्त्यहल् संख्या न च चिन्त्यो हलस्वर:॥    

इसे आसान भाषा में समझें तो - कादि नव - टादि नव - पादि पञ्चक – यद्यश्टक - क्ष शुन्यम्

कादि नव - क से शुरू होकर अगले 9 अक्षर को 1 से 9 तक के अंक से निरुपित किया जा सकता है.

टादि नव – ट से शुरू होकर अगले 9 अक्षर को 1 से 9 तक के अंक से निरुपित किया जा सकता है.

पादि पञ्चक – प से शुरू होकर अगले 5 अंक 1 से 5 तक के अंक से निरुपित किया जा सकता है.

यद्यश्टक – य से शुरू होकर अगले 8 अंक को 1 से 8 तक के अंक से निरुपित किया जा सकता है

क्ष – क्ष को शून्य से निरुपित किया जा सकता है



स्वर वर्ण को किसी अंक के साथ नहीं जोड़ा जाता है. जैसे – क , का , के, कै, को , कौ , कि और की सबके लिए सिर्फ 1 अंक का प्रयोग होगा. जब दो व्यंजन वर्ण का प्रयोग हो तो सिर्फ दुसरे व्यंजन का अंक मान्य होगा साथ ही अर्ध व्यजन को कोई मान नहीं मिलेगा. जैसे – ज्य में य को लिखा जायेगा तथा त् , न् , म् जो त , न और म का अर्ध व्यंजन है के लिए कोई अंक का प्रयोग नहीं होगा. साथ ही - अङ्कानां वामतो गतिः – अर्थात अंक दायें से बाएं ओर जाता है.

महाभारत को प्राचीन समय में जय कहा गया. क- ट – प – य के हिसाब से ज = 8 और य = 1 तथा नियम के हिसाब से इसका मान 18 हुआ. जय का अर्थ विजय से है और जय महाभारत के लिए भी प्रयुक्त हुआ है. अर्थात 18 का अर्थ एक विशाल विजय से है. सोलहवीं शदी के प्रसिद्ध गणितज्ञ और भाषाविद नारायण द्वारा लिखित भजन नारायणीयम में कटपयादि को आप समझ सकते हैं


इस भजन के अंतिम शब्द आयुरारोग्यसौख्यम् पर विचार करें जिसका शाब्दिक अर्थ  - आयु, आरोग्य और सुख कि प्राप्ति नारायण के भगवद भजन से प्राप्त किया जा सकता है.

यु

रा

रो

ग्य

सौ

ख्य

0

1

2

2

1

7

1

-

 इसके द्वारा कलियुग के उन बीते बर्षो कि गणना कि जा सकती है जब यह भजन लिखा गया. सूर्य सिद्धांत के अनुसार कलियुग का आरम्भ फरवरी 18, 3102 ईसा पूर्व से हुआ और .को अंकीय मान ( दायें से बाये ओर ) 1712210 होता है और कवि यहाँ बताने का प्रयास कर रहे हैं कि कलियुग के 1712210 वर्ष बीते जाने के बाद यह कविता लिखी गयी है. इसलिए ऐसा अनुमान लगाया जा रहा है कि यह कविता दिसम्बर 8, 1586 वर्ष में यह कविता लिखी गयी. इसी कड़ी को आगे बढ़ाते हुए कुछेक रोचक कड़ियों को जोड़ने का प्रयास करते हैं. वैदिक गणित कि पुस्तक जिसे भारती कृष्ण तीर्थ जी महाराज ने लिखी है में एक श्लोक देखने को मिलता है जिसके उद्गम के बारे में मुझे जानकारी तो नहीं पर इस श्लोक को कटपय पद्धति से रूपांतरित करने पर पाई का मान 32 अंक तक आता है . यह श्लोक अनुष्टप छंद में लिखी गयी है. इसमें श्री कृष्ण और गोपियों के बीच की निकटता को दर्शाया गया है.

गोपीभाग्य मधुव्रातः श्रुंगशोदधि संधिगः |
खलजीवितखाताव गलहाला रसंधरः ||

कटपय पद्धति के अनुसार सभी वर्णों को अंको से बदलने पर आप पाएंगे कि यह पाई के 32 अंक हैं.

गो -3,  पी-1, भा -4, ग्य -1, -5, घु -9, -2, -6, श्रु-5, -3, शो-5, -8, धि -9, सं-7, धि- 9, -3, -2, -3, जी -8, वि-4, -6, खा-2, ता -6, -4, -3, -3, हा-8, ला-3, -2, सं-7, -9, -2

3.1415926535897932384626433832792…

हिन्दुओं के धार्मिक ग्रंथों में गीता का बहुत महत्व है. जय (18) नामक काव्य ग्रन्थ में 72 पद्यों के माध्यम से 18 अध्याओं में 700 श्लोकों में व्यक्त श्री कृष्ण का अर्जुन को दिया यह उपदेश महाभारत के भीष्मपर्व के अध्याय 25 से 42 में वर्णित है. इस ग्रन्थ में उद्भव से मानव जीवन के अंत तक के सभी संशयों को दूर करने का तरीका बताया गया है. महान भौतिकविद अल्बर्ट आइंस्टीन को यह अफ़सोस था कि उन्होंने अपने यौवन काल में गीता के बारे में नहीं जाना. उनका कहना था – जब मैं भगवद्गीता पढता हूँ तो इसके अलावा सबकुछ मुझे काफी उथला लगता है. इसके साथ ही आइंस्टीन कहते हैं - मैंने भगवद्गीता को वैज्ञानिक अनुसंधानों के उद्देश्य से अपनी प्रेरणा और मार्गदर्शक का मुख्य स्रोत बनाया है...

गीता महात्म्य में गीता के बारे में लिखा है –

सर्वोपनिषदो गावो दोग्धा गोपालनन्दनः ।
पार्थो वत्सः सुधीर्भोक्ता दुग्धं गीतामृतं महत् ।६।

उपनिषद गाय हैं, श्री कृष्ण दूध दुहने वाला ग्वाला , अर्जुन बछड़ा है और जिसका मन निर्मल है वो सच्चा पीने वाला है. परन्तु अमूल्य गीता दूध है .

गीता में एक श्लोक है –

सर्वधर्मान्परित्यज्य , मामेकं शरणं व्रज।
अहं त्वा सर्वपापेभ्यो,  मोक्षयिष्यामि मा शुचः।।18.66।।

अर्थ :- सब धर्मों का परित्याग करके तुम एक मेरी ही शरण में आओ, मैं तुम्हें समस्त पापों से मुक्त कर दूँगा, तुम शोक मत करो।।

अब इस श्लोक को गणितीय रंग देने का प्रयास करें.

पाप के लिए कटपय मान 11 है अर्थात गीता के स्मरण और श्रवण से पाप का नाश होता है ऐसा मानकर गीता के कई श्लोकों में 11 से विभाजिता को देखने का प्रयास किया गया है.

सर्वधर्मान्परित्यज्य

7

4

9

5

1

2

1

1

मामेकं शरणं व्रज

5

5

1

5

2

5

2

8

अहं त्वा सर्वपापेभ्यो

0

8

4

7

4

1

1

1

मोक्षयिष्यामि मा शुचः

5

0

1

1

5

5

5

6

इस श्लोक के कटपय पद्धति से कोडिंग करने पर हमें कुल 32 अंक मिलते हैं - 7 4 9 5 1 2 1 1 5 5 1 5 2 5 2 8 0 8 4 7 4 1 1 1 5 0 1 1 5 5 5 6  जो 11 से विभाज्य हैं .

सम स्थानों पर आने वाले अंको का योग = 64

विषम स्थानों पर आने वाले अंको का योग = 53

अंतर = 64 – 53 = 11

माधव कि ज्या सारिणी

आर्यभट कि तरह केरल के गणितज्ञ माधवाचार्य ने भी ज्या सारिणी (sine table) बनाने के लिए कुछेक सूत्र प्रतिपादित किये . माधवाचार्य का यह सूत्र कटपयादि नियम पर आधारित है और आर्यभट कि तरह  3.750 के अंतर पर बनी हुई है. एक वृत्त के चार पाद होते हैं और प्रत्येक पाद (quadrant) 90 अंश का कोण बनाता है. इसे 24 से भाग करने पर 3.750 का मान आता है.  एक वृत्त के केंद्र पर का कोण 360 अंश का होता है अर्थात 360 × 60 = 21600 मिनट. है , ऐसे वृत्त जिसकी परिधि 21600 है उसकी त्रिज्या (R) = 21600/ 2π = 3437.75 मिनट होगी और वर्तमान ज्या सारिणी निकालने के लिए दिए गये मान को 3437.75’ से भाग देना पड़ेगा.


पहली पंक्ति - श्रेष्ठं नाम वरिष्ठानां (224ʹ 50ʹʹ 22ʹʹʹ)  का मान देती है जिसे नीचे लिखे कोड को दायें से बाएं पढने पर प्राप्त कर सकते हैं


दूसरी -  हिमाद्रिर्वेदभावनः(448ʹ 42ʹʹ 58ʹʹʹ) तीसरी - तपनो भानुसूक्तज्ञो ( 670ʹ 40ʹʹ 16ʹʹʹ) ---- अंतिम दो पंक्ति को छोड़ यह पूरा श्लोक 90 अंश तक का मान निकालने में मदद करते हैं.


ज्या के इन मानों को त्रिज्या R से भाग देने पर  sin A का जो मान निकलता है वो आधुनिक मान के काफी करीब है


इस प्रकार हम पाते हैं कि कटपय पद्धति कूट भाषा में गणित को लिखने में एक अहम भूमिका निभा सकती है.


                                                  

डॉ राजेश कुमार ठाकुर – सम्प्रति – असिस्टेंट प्रोफेसर – डाइट दरियागंज – दिल्ली

1 comment:

  1. यह बहुत ही रोचक है। अगले का इंतज़ार रहेगा। इसे मैं अपने बच्चों(स्कूल के) को पढवाऊँगी।

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गणित और रामायण

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