रामानुजन
का नाम आते ही कुम्भकोनम के जिस घर की तस्वीर सामने आती है वो वास्तव में रामानुजन
के पिता के घर है जहाँ उनकी शिक्षा
-दीक्षा हुई पर इरोड के जिस घर में रामानुजन का जन्म हुआ वो वास्तव में उनका
ननिहाल था और दुर्भाग्य कि बात ये है कि इसका पता टोक्यो विश्वविद्यालय के विज्ञान
एवं प्रौद्योगिकी विभाग के प्रमुख प्रो.सुसुमु सकुराई और तमिलनाडु के विज्ञान
संस्था के अध्यक्ष एन. मनी ने 2013 में लगाया.
पाई मैथमेटिक्स एसोसिएशन के अध्यक्ष आर शिवरमन इस बात से
काफी दुखी हैं कि भारत में जन्मे रामानुजन को उनके मृत्यु के 100 वर्ष बाद भी
यथोचित सम्मान नहीं मिला. वो कहते हैं - पश्चिम में ऐसा घर गणित के संग्रहालय में तब्दील हो जाता, लेकिन हमारे देश में यह उपेक्षित
है। अधिकारियों को कम से कम उस गली का नामकरण रामानुजन के नाम पर करने पर विचार
करना चाहिए; नहीं तो इतिहास के इस अनमोल अंश को आने वाली पीढि़यां भूल सकती हैं. 18 अलाहिरी गली में
स्थित इस घर को प्रशासन जल्द ही एक म्यूजियम बना देगी ऐसा हम विश्वास कर सकते हैं.
आपको यह जानकर ताज्जुब होगा कि इस घर का पता लगाने के लिए प्रो. सकूराई और एन मनी
के पास जो जानकारी उपलब्ध थी वो इतनी कम थी कि यह एक नामुमकिन सा काम प्रतीत हो
रहा था. रामानुजन का ननिहाल जहाँ वो पैदा हुए; एक शिव मन्दिर और मन्दिर के तालाब
के बीच स्थित है और इसी जानकारी को लेकर इरोड के हर गलियों कि जांच-पड़ताल शुरू हुई
और आखिर शहर के लोगों और पुराने दस्तावेज़
के हिसाब के मकान संख्या 18 पर मामला शांत हुआ.
बड़े
होने पर रामानुजन अपने पैतृक घर कुम्भकोनम में आ गये . आज कुम्भ्कोनम का यह घर एक
म्यूजियम बन गया. 2003 तक यह घर अलग- अलग लोगों का आसियाना बना रहा परन्तु 20
दिसम्बर 2003 को यह घर डॉ ए पी जी अब्दुल
कलाम के प्रयास और सास्त्रा युनिवर्सिटी के द्वारा इसके रखरखाव कि वजह से देश को
समर्पित कर दिया गया. इस घर में रामानुजन कि प्रतिमा और उनके किये कार्यों कि
जानकारी को आप देख सकते हैं . सास्त्रा युनिवर्सिटी हर साल रामानुजन के शहर
कुम्भ्कोनम में 32 वर्ष तक के गणितज्ञ जो रामानुजन के शोध से प्रेरित होकर कोई शोध
करते हैं को 10 हजार डॉलर का सम्मान रामानुजन के जन्मदिन 22 दिसम्बर को पुरस्कृत
करती है.
रामानुजन
कि कहानी एक छोटे घर के उस बालक कि कहानी है जिसके पास ना लिखने के लिए कॉपी है ,
ना पुस्तक के लिए पैसे और ना ही दो वक्त का खाना पर कैसे यह साधारण सा दिखने वाला
कुशाग्र बालक अपनी लगन और कर्तव्यनिष्ठता के बल पर विश्व पटल पर एक दिदिप्तमान
तारा बन जाता है यह हर छात्रों के लिए सीखने कि जरूरत है.
दसवीं
कि परीक्षा उन्होंने पुरे जिले में प्रथम स्थान प्राप्त करके के. रंगनाथ राव
पुरस्कार हासिल किया जहाँ सम्मान समारोह
में प्रधानाध्यापक कृष्णास्वामी अय्यर ने कहा- यह 100 से अधिक अंक पाने का हकदार
है और मेरे पास अंक देने कि छुट होती तो मैं इसे 100 कि जगह 1000 अंक देता. इनके
गुरु हार्डी भी इन्हें पाकर धन्य हो गया और इन्हें युलर और जैकोबी के दर्जे का
उत्तम गणितज्ञ मानते थे. प्रथम विश्वयुद्ध के समय जब पूरा विश्व युद्ध कि विभीषिका
से पीड़ित था रामानुजन ने अपने शोध से विश्व को गणित कि पराकाष्ठा पर पहुचाने का
काम किया और 31 वर्ष कि उम्र में सबसे कम उम्र का रॉयल सोसाइटी का फेलो बनकर यह
साबित कर दिया कि योग्यता किसी डिग्री का मोहताज नहीं है अन्यथा तीन असफल प्रयास
में 11 वी पास ना करने वाला व्यक्ति 5 साल में गुरु हार्डी के साथ 30 से अधिक शोध
करके शोध में डिग्री (पीएचडी ) कैसे ले सकता है.
राजेश
कुमार ठाकुर
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