भारतीय गणित का स्वर्णकाल
का समय आर्यभट प्रथम के समय को कहा जा सकता है. ऐसे तो आर्यभट नाम के दो गणितज्ञ
पैदा हुए एक जिनका जन्म 476 इसवी में हुआ और उनका कार्यक्षेत्र कुसुमपुर आधुनिक
पटना के आस पास रहा है और जिन्होंने 499 इसवी में मात्र 23 वर्ष की अवस्था में
आर्यभटीय पुस्तक की रचना की. दुसरे आर्यभट का जन्म 950 इसवी के आस पास हुआ और
इन्होने महाआर्य सिद्धांत नामक पुस्तक की रचना की.
षष्ट्यब्दानां
षष्टिर्यदा व्यतीतास्त्रयश्च युगपादाः । त्र्यधिका विंशतिरब्दास्तदेह मम जन्मनो
व्यतीताः
इस श्लोक के अनुसार
आर्यभट अपना जन्म 3577 कलीयुग वर्ष बीत जाने के पश्चात् अर्थात 476 इसवी बताते हैं
आर्यभट ने अपने समय में
एक नये प्रकार की संख्या पद्धति विकसित की थी जो बेहद रोचक थी और इस प्रणाली में
हिंदी के वर्णमाला का प्रयोग करके बड़ी से बड़ी संख्या लिखी जा सकती थी. सबसे मजेदार
बात यह है की इस प्रणाली में शून्य का कोई प्रयोग किये बिना संख्या लिखी जाती थी.
बहुत से लोग शून्य के खोजकर्ता के रूप में आर्यभट को याद करते हैं पर उनके संख्या
लिखने के प्रणाली में शून्य का कोई जिक्र ही नहीं है. यह बात सत्य है की आर्यभट की
संख्या प्रणाली का आगे प्रयोग नही हो सका और यह उनके साथ ही लुप्त हो गयी पर
वर्णाक्षर पद्धति निश्चित रूप से आर्यभट के द्वारा खोजी एक नवीन पद्धति थी.
वर्गाक्षराणि वर्गे अवर्गे अवर्गाक्षराणि कात् ङमौ यः ।
खद्विनवके स्वरा नव वर्गे अवर्गे नवान्त्यवर्गे वा ॥
देवनागरी
वर्णमाला में 25 व्यंजन होते है जिन्हें कवर्ग, चवर्ग, टवर्ग, तवर्ग और पवर्ग के
रूप में हम जानते हैं इन्हें 1 से लेकर 25 तक के अंक मान दिए गये साथ ही 9 अवर्गीय
व्यंजन – य, र, ल, व, श, ष, स, ह के लिए
क्रमशः 30, 40, 50, 60... तथा स्वर वर्ण अ और आ के लिए 10, इ , ई के लिए 100 ---
मान निर्धारित किये गये थे जो गुणोत्तर श्रेणी में 10 के घात के रूप में लिखे गये
.
सामान्य से दिखने वाले इस अंक प्रणाली के द्वारा बड़ी से बड़ी
संख्या लिखने की व्यवस्था थी.
ग = 3 गी =
3 × 100 = 300 गु = 3 x 10000 = 30000 ग्र = 3 x 1000000
=3000000
गीता = गी + ता =
300 + 16 = 316
एक अन्य शब्द ङिशिबुणॢष्खृ की व्याख्या करते हैं –
ङि = ङ + इ = 5 x 100 = 500
शि = श + इ = 70 × 100 = 7000
बु = ब + उ = 23 × 10000 = 230000
णॢ = ण् +लृ = 15 ×100000000¾ 1500000000
ष्खृ = (ख + ष) ऋ = ¾¼2$80½×1000000 ¾ 82000000
ङिशिबुणॢष्खृ = 1582237500
आप देख पा रहें हैं की किस तरह सुनियोजित तरीके से इस
पद्धति के द्वारा संख्या को लिखने की परम्परा थी. एक पद्यात्मक शैली में लिखी जाने
वाली संख्या जिसमें सभी वर्णों का एक मान नियत हो से आप बड़ी से बड़ी संख्या लिख
सकते हैं परन्तु इसे व्याख्या करने में हो रही परेशानी को देखते हुए आगे के
गणितज्ञों ने इस प्रणाली को अपनाने पर कोई बल नहीं दिया. यही नहीं इस प्रणाली के
द्वारा आप सिर्फ पूर्ण संख्या नहीं भिन्नात्मक संख्या का प्रयोग भी कर सकते हैं.
डॉ राजेश कुमार ठाकुर
No comments:
Post a Comment