क्या आप जानते हैं ?
पाइथागोरस प्रमेय आज दुनिया में सबसे अधिक प्रचलित और सुंदर
प्रमेयों में से एक है. विश्व रिकॉर्ड में स्थान प्राप्त यह प्रमेय 370 से भी अधिक
तरीको से सिद्ध हो चूका है जिनमे 12 वर्ष के अल्बर्ट आइंस्टीन तथा अमेरिकी
राष्ट्रपति जेम्स गेरफिल्ड द्वारा दिए गये प्रमाण भी मौजूद है. ऐसे तो यह प्रमेय युक्लिड ने भी सिद्ध किया और अपनी
पुस्तक एलिमेंट खंड 6 के कथन 31 में समकोण त्रिभुज के बारे में बात की परन्तु
एलिमेंट के खंड 1 के कथन 47 में वर्तमान पाइथागोरस प्रमेय को सिध्द करने का प्रयास
किया है. यदि इन 370 से अधिक प्रमेय के तरीको की बात करें तो इनमे सबसे आसान तरीका
यह है – चार समान त्रिभुज लें और इनमे से तीन को 90, 180 तथा 270 अंश पर घुमाकर बने
चारो त्रिभुजों को जोडकर एक वर्ग बनाया गया. इस बड़े वर्ग जिसकी भुजा a + b है का क्षेत्रफल- छोटा
वर्ग जिसकी भुजा c है का क्षेत्रफल और चार त्रिभुजों के क्षेत्रफल है का मान के बराबर होगा.
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दीर्घचतुरश्रस्याक्ष्णया रज्जु: पार्श्र्वमानी तिर्यग् मानी च यत् पृथग् भूते
कुरूतस्तदुभयं करोति ॥
ऐसे
बौधायन ने इसका कोई प्रमाण तो नहीं दिया पर गणितीय अर्थ समान है और इसी कारण आज
लोग पाइथागोरस प्रमेय को बौधायन प्रमेय कहने में गर्व का अनुभव करते हैं .
यही
नहीं बेबीलोन के लोग भी इस प्रमेय के बारे में जानते थे और YBC 7289 पट्टी में लिखे अंक भी पाइथागोरस त्रिक की सत्यता पर
हजारों वर्ष पूर्व जानकारी देती है. फरमा ने अपने अंतिम प्रमेय में में इसी बात पर बल
दिया. लगभग 350 वर्ष के बाद एंड्रू विल्स ने इस प्रमेय को 1995 में सिद्ध किया
गया. पियरे
फरमा ने डाईफेंट्स की पुस्तक अरिथमेटिका के हासिये पर लिखा की पाइथागोरस का प्रमेय
n के 2 मान से अधिक के लिए सही नहीं है और वो इसे सिद्ध कर
सकते हैं पर जगह की कमी के कारण वो सिर्फ कथन लिख रहें हैं . उनके बेटे सामुएल ने
फरमा की मृत्यु के बाद उनके सभी पत्र,
लेख को संगृहीत करने का काम किया जिसके कारण फरमा का अंतिम
प्रमेय के नाम से प्रचलित यह सवाल आज भी लोगों
के
जहन में बिठा दी. पाइथागोरस त्रिक की बात करें तो इसे बौधायन, और ग्रीक गणितज्ञ
प्लेटो ने भी निकालने का प्रयास किया. यह
त्रिक कितना उपयोगी है सिर्फ गणित प्रेमी ही बता सकता है.
डॉ
राजेश कुमार ठाकुर
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