क्या आप जानते हैं ?
आज
हम गिनती की शुरुआत संख्या 1 से करते हैं, पर क्या आपने सोचा की संख्याओं के सबसे
बड़े पैरोकार पाइथागोरस 1 के बारे में क्या सोचते थे? आपको यह जानकर
ताज्जुब होगा कि पाइथागोरस के लिए 1 कोई संख्या ही नहीं थी. इसका अर्थ यह कदापि
नहीं की संख्या 1 की कोई अहमियत ही नहीं है. पाइथागोरस यह मानते थे की संख्या कभी
भी एकल नहीं रह सकती इसलिए उनकी संख्या 2 से शुरू होती थी और वो संख्या को नर और मादा मानते थे. सभी सम संख्या मादा और विषम
संख्या नर हैं. संख्या 1 चूँकि एकल संख्या है इसलिए यह एकता और ईश्वरीय का प्रतिक
है. 1 सभी संख्या का जन्मदाता है और इसमें एक विचित्र ताकत है. इसे विषम के साथ
जोड़ें तो यह सम और सम के साथ जोड़ें तो विषम संख्या में बदल जाती है. 2 + 1 = 3 और
3 + 1 = 4.
पाइथागोरस
संख्याओं से बहुत प्रेम करते थे और उनकी दृष्टि में हर संख्या का अपना एक अलग
महत्व होता था. खासकर संख्या 4 और 10 को वो काफी सम्मान देते थे. संख्या 2 पक्ष को
मजबूती देने का काम करता है क्योंकि हर प्रश्न के दो ही उत्तर हो सकते हैं या तो
हाँ या ना, दिन- रात , महिला- पुरुष , हाँ – ना , मृत्यु – जीवन, यह दो पक्षों की
मजबूती को प्रकट करता है. संख्या 4 न्याय
का प्रतिक माना गया और 5 चूँकि विषम और सम का योग है अतः इसे नर और मादा के जोड़
अर्थात शादी का प्रतिक माना गया. पाइथागोरस और उनके अनुयायी संख्याओं की पूजा करते
थे और इनके स्वरुप से नई और अद्भुत जानकारी निकालना उन्हें बेहद अच्छा लगता
था. परिपूर्ण संख्या (perfect number) – ऐसी
संख्या जो स्वयं को छोड़ अपने सभी गुणनखंडो के योग के बराबर है जैसे 6 = 1 + 2 + 3
, अभाज्य संख्या (prime number) जो 1 और स्वयं से विभाजित हों , मित्र संख्या (amicable number)
– जहाँ एक संख्या के गुणनखंड का योग दूसरी संख्या होती है. जैसे 220 के गुणनखंड 1
+ 2 + 4 + 5 + 10 + 11 + 20 + 22 + 44 + 55 + 110 = 284 तथा 284 के गुणनखंड का योग
1 + 2 + 4 + 71 + 142 = 220 होता है ; के
बारे में भी पाइथागोरस ने विस्तृत चर्चा की.
परिपूर्ण
संख्या के बारे में युक्लिड ने अपनी पुस्तक एलिमेंट के 9वे खंड के 36 वें कथन में
विस्तृत चर्चा की है – 1 से लेकर अगर सभी संख्या जो पहले का दुगुना है को तबतक
जोड़ा जाये जबतक की वो अभाज्य न हो जाये तो योगफल और अंतिम संख्या का गुणा हमेशा एक
परिपूर्ण संख्या होगा. गणित की भाषा में बात करें तो
1 + 2 + 4 + 8 + 16 + 32 + ... + 2^(k-1) = 2^(k)-1.
यदि k = 2 हो तो 1 + 2 = 3 एक अभाज्य संख्या है अतः अंतिम संख्या 2 और कुल योग 3 का गुणनफल 2 × 3 = 6
एक परिपूर्ण संख्या होगा . यदि k = 3 हो तो 1 + 2 + 4 = 7 एक अभाज्य संख्या है अतः अंतिम संख्या 4 और कुल योग 7 का गुणनफल 4 × 7 = 28
एक परिपूर्ण संख्या होगा . यदि k = 4 है तो 1 + 2 + 4 + 8 = 15 एक अभाज्य
संख्या नहीं है अतः k = 5 पर विचार करें. k = 5 के लिए, 1 + 2 + 4 + 8 + 16 = 31 एक अभाज्य संख्या है अतः अंतिम संख्या 16 और कुल योग 31 का गुणनफल 16 × 31
= 496 एक परिपूर्ण संख्या होगा. इसी तरह पाइथागोरस को जिस प्रमेय के लिए याद किया
जाता है उसके बारे में माया सभ्यता के लोगों को भी जानकारी थी और बौधायन ने
शुल्बसूत्र में इसकी जानकारी भी दी.
डॉ राजेश कुमार ठाकुर
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