क्या आप जानते हैं? –
इस रंग- बिरंगी दुनिया में हमारा देश भारत निश्चित ही एक ऐसा देश है जहाँ रंगों का बहुत ही खास महत्व है. यहाँ के सभी त्यौहार और उनमे पकने वाले रंग- बिरंगी मिठाइयाँ और पकवान , किसका मन नहीं मोह लेती. बात करें त्योहारों की तो होली में उड़ते गुलाल और सतरंगी चेहरे सबको अपनी ओर आकर्षित करती है. आज हम बात रंगों का गणितीय परिचय आपको करवाते हैं. रंग हमारे जीवन का अभिन्न अंग है और बेरंग दुनिया की कल्पना करना किसे अच्छा लगता है.
समुच्चय सिद्धांत (Set Theory) में आपने डी – मोर्गन का नाम सुना होगा उनके एक शिष्य फ्रांसिस गुथरी (Francis Guthrie) थे जो पढाई तो वकालत की कर रहे थे पर गणित से बेहद प्यार करते थे. फ्रांसिस ने किसी नक़्शे में अधिक से अधिक 4 रंगों की आवश्यकता पर बात की ताकि कोई भी दो निकटवर्ती देश जिनकी सीमा आपस में मिलती हो को अगर नक़्शे में अलग- अलग रंगों से दिखाना हो तो अधिकतम 4 रंगों की जरूरत पड़ेगी. 1852 में मॉर्गन ने हैमिलटन को इस बात की सत्यता के लिए एक पत्र लिखा पर कोई सकारात्मक हल नहीं मिला. अलग – अलग लोगों ने इसे समय-समय पर हल करने का प्रयास किया और अंततः 1977 में कंप्यूटर की मदद से लगभग 1200 घंटे की मेहनत के बाद इसे सिद्ध किया जा सका. 1963 में प्रे (Pray) ने रंगों के विन्यास को समुच्चय की मदद से समझने का प्रयास किया . सबको पता है कि सात रंगों के बने इन्द्रधनुष हों या अन्य रंग- बिरंगी तितलियाँ ये मुख्यतः तीन रंगों पर ही काम करती है. सफेद रंग इन्ही तीन रंग जिन्हें प्राथमिक रंग – लाल, हरा, और नीला पर आधारित है. सफेद रंग सभी रंगों का मिश्रण है. अर्थात इसे यूनिवर्सल समुच्चय कहा जा सकता है – अर्थात 4000 से 7000 आर्मस्ट्रांग के बीच के तरंगधैर्य को सफेद रंगों का समूह कहा जा सकता है .
डॉ
राजेश कुमार ठाकुर
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