क्या आप जानते हैं –
भारत के समकालीन गणितज्ञों की बात करें तो जो नाम भारत के अधिकांश जनता को पता है वो निश्चित तौर पर श्रीनिवास रामानुजन का है. अप्रैल महीने के 26 तारीख को सन 1920 में स्वर्गलोक गमन करने वाले इस महान सपूत ने अपनी गरीबी को शिक्षा के बीच में कभी बाधक नहीं बनने दिया और ना ही अपने माँ- बाप से अपनी गरीबी की शिकायत की. बचपन में ही जी.एस . कार की पुस्तक – ए सिनोप्सिस ऑफ़ एलीमेंट्री रिजल्ट ओं प्योर एंड एप्लाइड जिसमे लगभग 6500 प्रश्न थे से प्रभावित होकर रामानुजन ने भी इंग्लैंड जाने से पूर्व अपने छात्र काल में तीन कॉपियां (नोट-बुक) लिखा जिसमे सिर्फ परिणाम थे .गरीबी के कारण रामानुजन अपने नोट-बुक में इन परिणामों का हल नहीं लिख पाए. यही 3 नोट-बुक रामानुजन को भारत में अलग-अलग गणितज्ञों से मिलाने , अपने कार्यों से लोगों को आकृष्ट करने में मदद करता रहा. रामानुजन अपने प्रमेयों का हल स्लेट में लिखते थे. 1903 – 1914 तक रामानुजन ने जो तीन नोट-बुक लिखी उनमे पहले नोटबुक में 16 अध्याय हैं और कुल 134 पन्ने हैं जबकि दुसरे नोटबुक में 21 अध्याय और कुल 252 पन्ने हैं , तीसरा नोटबुक में सिर्फ ३३ पन्ने हैं जिसे किसी अध्याय में नहीं बांटा गया है. इंग्लैंड के प्रवास के दौरान उन्होंने अपने नोट-बुक में कोई प्रश्न नहीं जोड़ा. रामानुजन के भारत वापस आने के बाद प्रो हार्डी ने मद्रास विश्वविद्यालय से रामानुजन के इस धरोहर को प्रकाशित करने का अनुरोध किया जिसके बाद प्रोफेसर जी एन वाटसन को सं 1931 में इन नोट-बुक को पढने और यथोचित संशोधन करने का दायित्व मिला. परन्तु यह कार्य काफी कठिन था क्योंकि इसमें लगभग 4000 प्रमेयों का संकलन था . यूँ तो प्रो. वाटसन ने 1928 से 1936 के बीच रामानुजन से प्रभावित होकर काफी शोध-पत्र प्रकाशित किये और 1935 में लन्दन मैथमेटिकल सोसाइटी में अपने अध्यक्षीय भाषण में मोक-थीटा फंक्शन पर भी बात की परन्तु रामानुजन के इस ऐतिहासिक ग्रन्थ पर प्रो बी एम विल्सन के साथ मिलकर काम करने का इरादा जताया. सबसे पहले उन्होंने दुसरे नोट-बुक से आरम्भ करने का मन बनाया और विल्सन ने अध्याय 2 से 13 और वाटसन ने अध्याय 14 से 21 को संशोधित करने का मन बनाया. पर 38 वर्ष की अवस्था में विल्सन के असामयिक निधन ने इस कार्य को अधुरा छोड़ दिया. 1957 में दादा भाई नोरोजी ट्रस्ट से आर्थिक मदद मिलने के बाद प्रो होमी जहांगीर भाभा और प्रो चंद्रशेखरन के मार्गदर्शन में रामानुजन के तीनो नोटबुक को दो खंडो में प्रतिलिपि तैयार की गयी जिसे रामानुजन जन्म के 100 वे वर्षगांठ में 1987 में स्प्रिंगर – नारोसा द्वारा 1000 कॉपी प्रकाशित की गयी . वाटसन और विल्सन के अधूरे संशोधन को पूरा करने का दायित्व 1981 में प्रो ब्रूस सी बर्न ने लिया और इसमें उन्होंने भारतीय गणितज्ञ पद्मिनी जोशी, एस. भार्गव जैसे की मदद ली . पांच खंडो में प्रकाशित यह नोटबुक स्प्रिंगर द्वारा प्रकाशित की गयी जिसका पहला खंड 1985 तथा पांचवा 1997 में मूर्त रूप में आया . रामानुजन ने अपने जीवनकाल में ज्यामिति पर सबसे कम काम किया. उनके नोटबुक में एक वर्ग जिसका क्षेत्रफल वृत्त के क्षेत्रफल के बराबर है को सिध्द करता हुआ एक ज्यामिति रचना देखने को मिलता है. 1913 में रामानुजन ने इंडियन मैथमेटिकल सोसाइटी द्वारा प्रकाशित लेख में वर्ग की भुजा जिसका क्षेत्रफल वृत्त के बराबर है , निकालने का तरीका दिया है. ---- डॉ राजेश कुमार ठाकुर
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