क्या आप जानते हैं ?
गणित की कई शाखाओं में से एक शाखा है त्रिकोणमिति. जैसा की
नाम से ही स्पष्ट है यह किसी त्रिभुज के भुजाओं और कोणों के बीच सम्बन्ध स्थापित
करने का काम करता है. यदि त्रिभुज समकोण हो तो इनके भुजा और कोणों के बीच के 6
संबंधों के बारे में आप जानते ही है जो क्रमशः – Sin, Cosine, Tangent, Cotangent,
Secant , Cosecant कहलाते हैं. अब बात इस विषय के उत्पत्ति की करते हैं. एक वृत्त
को कोण के आधार पर 360 हिस्सों में बांटा जा सकता है और इसी आधार पर सुमेर सभ्यता
के लोगों ने कोणों को नापने की परम्परा विकसित की. युक्लिड और आर्कमिडीज ने जीवा और
उसके द्वारा वृत्त पर बने कोणों का अध्ययन करने की कोशिश की और इनके बीच के
संबंधों को ज्यामितिक रूप में लिखने का प्रयास किया जो आधुनिक त्रिकोणमिति सारिणी
के सामान था पर इसमें सबसे सराहनीय प्रयास हिप्पारकस ने 140 ईसा पूर्व किया जब
उन्होंने वृत्त के जीवा पर आधारित सारिणी बनाई जो आधुनिक ज्या (sine)
के सारिणी के समान था और इसका उपयोग उन्होंने त्रिकोणमिति के प्रश्नों को हल करने
के लिए किया. इसका आशय ये नही है की भारतियों ने गणित के इस क्षेत्र में कोई काम
नहीं किया. भारतीय ग्रन्थ सूर्य सिद्धांत को त्रिकोणमिति पर आधारित प्रथम ग्रन्थ
कहा जा सकता है. भारत के महान गणितज्ञ आर्यभट ने भी अपनी त्रिकोणमिति सारिणी बनाने
में इस ग्रन्थ का सहारा लिया. आर्यभट ने ज्या , कोज्या और उत्क्रम ज्या के लिए जो
सारिणी बनाये उसमे 0 से 90 अंश के बीच कोणों का अंतर 3.75 अंश का रखा जो दशमलव के
चार अंक तक शुद्ध है. आर्यभट के बाद दूसरा प्रमुख योगदान वराहमिहिर ने किया. अपनी
पुस्तक पञ्च -सिद्धान्तिका में उन्होंने ना सिर्फ ज्या और कोज्या पर आधारित सारिणी
बनाई वल्कि इस ग्रन्थ में ज्या और कोज्या पर आधारित तीन सूत्र भी दृष्टिगोचर हैं
जो क्रमशः
जैसा की हमें पहले ही ज्ञात है की आर्यभट पहले गणितज्ञ थे
जिन्होंने वृत्त की परिधि और व्यास के बीच के सम्बन्ध द्वारा एक स्थिरांक (π)
का सही मान दशमलव के बाद चार अंकों तक निकालने में सफलता पाई और इसका मान 3.1416
निकला . यदि एक वृत्त को 360 अंश ( = 360× 60 = 21600 मिनट) में बांटा जाय तो
वृत्त की परिधि के सूत्र से C = 2πR से
R = . भारतीयों द्वारा सबसे महत्वपूर्ण योगदान त्रिकोणमिति
सारिणी का बनाना था जिसके लिए अर्ध-जीवा या ज्या सारिणी का निर्माण आवश्यक था. अब
एक वृत्त के चतुर्थांश जिसकी त्रिज्या R हो को अगर 24 बराबर हिस्से में बांटने पर
प्रत्येक खंड का मान 225 मिनट के बराबर आता है अर्थात 24
होगा.
आर्यभट ने ज्या की सारिणी में प्रत्येक कोण के मान के बीच
इसी अंतर का उल्लेख किया है. कोण का मान बढ़ने से सारिणी में ज्या के मान की
शुद्धता बढती हुई प्रतीत होती है. आर्यभटीय में सारिणी बनाने सम्बंधित जो सूत्र
मौजूद है वो इस प्रकार है –
मखि भखि फखि धखि णखि ञखि ङखि हस्झ स्ककि किष्ग श्घकि किघ्व |
घ्लकि किग्र हक्य धकि किच स्ग झश ङ्व क्ल प्त फ छ कला-अर्ध-ज्यास् ||
अगला पड़ाव इस क्रम में तब आया जब ब्रह्मगुप्त ने द्वितीय घात
प्रक्षेप (Second Order Interpolation) से सम्बंधित एक सूत्र दिया जिसमें sin(n+1)x
– sinx के
उपयोग करते हुए सारिणी बनाने में सफलता प्राप्त की . इसके आगे माधव,
परमेश्वर जैसे केरल के गणितज्ञों ने आगे चलकर त्रिकोणमिति को आगे बढ़ाने में अहम
योगदान दिया.
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