Monday, July 14, 2025

पाइथागोरस का संसार - यूनान से हड़प्पा तक राजेश कुमार ठाकुर

 

क्या आप जानते हैं ? –

जब एक बच्चा पहली बार ज्यामिति पढना शुरू करता है तो जिस प्रमेय से वह पहली बार अपना साक्षात्कार करता है वो है – पाइथागोरस प्रमेय. एक ऐसा प्रमेय जो आज तक एक रहस्य बना है. इस प्रमेय से जुडी कई ऐसी बातें है जो आपको आश्चर्य में डाल सकती है.  भारत में सैकड़ों वर्ष पूर्व जब पाइथागोरस पैदा भी नहीं हुए थे इस प्रमेय पर आधारित यज्ञ वेदी बनाने का प्रचलन था और बौधायन और कात्यायन ने अपनी शुल्व- सूत्र में वर्णित किया.

दीर्घचतुरश्रस्याक्ष्णया रज्जु: पार्श्वमानी तिर्यंगमानी च यत्पृथग्भूते कुरुतस्तदुभयं करोति। (बो। सू० १-४८)

किसी आयत के विकर्ण द्वारा व्युत्पन्न क्षेत्रफल उसकी लम्बाई एवं चौड़ाई द्वारा पृथक-पृथक व्युत्पन्न क्षेत्र फलों के योग के बराबर होता है।

यूनान में जन्मे पाइथागोरस को गणित के क्षेत्र में यदि किसी खोज के लिए याद किया जाता है तो वो है किसी समकोण त्रिभुज के तीनों भुजाओं के बीच के सम्बन्ध पर आधारित प्रमेय के लिए. मजेदार बात यह है की पाइथागोरस जिन्होंने एक विद्यालय जिसका नाम – अर्धवृत्त था की स्थापना की.यहाँ सिर्फ पुरुषों को प्रवेश मिलता था . प्रवेश के लिए व्यक्ति की योग्यता, संख्या से लगाव के अतिरिक्त  सभी सदस्यों को प्रवेश के पहले अपनी सारी खोज, ज्ञान छुपाकर रखने की कसमें खिलाई जाती थी. अर्धवृत में पढने वाले छात्रों के लिए ब्रह्मचर्य का नियम पालन करना , मांस- मदिरा का खाना वर्जित था. पाइथागोरस खुद भी शाकाहार का पालन करते थे पर ऐसी किंवदन्ती है की जब पाइथागोरस ने समकोण त्रिभुज पर आधारित यह प्रमेय खोजा तो पुरे शहर में 100 बैलों की बली चढ़ाकर पुरे शहर को दावत दी.

आज लगभग 5 हजार साल बाद भी यह प्रमेय एक रहस्य बना है क्योंकि पाइथागोरस ने इस प्रमेय को कब और कैसे खोजा इसका कोई प्रमाण मौजूद नहीं है पर इस प्रमेय को 371 तरीको से सिद्ध किया जा चूका है. 1927 में एलिशा लूमिस की पुस्तक द पाइथागोरियन प्रोपोजीशन में यूक्लिड, आइंस्टीन, लेओनार्दो विन्ची और अमेरिकी राष्ट्रपति जेम्स ए गारफील्ड द्वारा सिद्ध करने का तरीका मौजूद है. युक्लिड ने एलिमेंट के खंड 1 सिद्धांत 47 और खंड 6 के सिद्धांत 31 में पाइथागोरस प्रमेय के बारे में लिखा है. आइंस्टीन का लगाव पाइथागोरस प्रमेय से इस कदर गहरा था की अपने सापेक्षता के सिद्धांत के खोज में उन्होंने पाइथागोरस प्रमेय के उपयोग करने की बात कबूल की.

dx2+dy2+dz2=(cdt)2 में cdt , प्रकाश द्वारा dt समय में तय दुरी c है.

बेबीलोन के लोगों को पाइथागोरस के जन्म से लगभग 1000 साल पहले इस प्रमेय की जानकारी थी.  बेबिलोनिया में खुदाई में प्राप्त YBC7289 पट्टी में एक वर्गाकार आकृति दिखती है जिसके विकर्ण पर 1; 24; 51; 10 लिखा हुआ है जिसे बेबीलोन के 60 आधारित संख्या पद्धति में लिखने पर 1 + 24/60 + 51/60^2 + 10/60^3 = 1.41421296 प्राप्त होता है जो 2 के वर्गमूल का दशमलव के बाद अगले 6 अंको तक सही मान को बतलाता है.



 इसका अर्थ यह हुआ की 1 इकाई वाले वर्ग के विकर्ण की लम्बाई का ज्ञान उन्हें था. पट्टी में नीचे की ओर 42; 25;35 लिखा है जिसे 42 + 25/60 + 35/60^2 के रूप में लिखने पर इसका मान 42.4263.. के बराबर आता है जो वर्ग की भुजा 30 को 1.414 . .  से गुणा करने पर प्राप्त होता है अर्थात वर्ग की भुजा 30 इकाई होने पर उसका विकर्ण 42.4263.. होगा. हड़प्पा काल में सडकों का निर्माण भी इस तरह किया गया था की वो एक दुसरे को समकोण पर काटे. यह शहर की रचना करने का अनोखा तरीका हड़प्पाकालीन सभ्यता में उनके गणित और विज्ञानं के प्रति जागरूकता और गणित के सिद्धांतों को समझने और उन्हें आत्मसात करने पर बल देता है.



 

राजेश कुमार ठाकुर

 

 

 

 

 

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