Tuesday, July 15, 2025

गणित और रामायण - राजेश ठाकुर

 

रामायण और गणित

हिन्दुओं के पवित्र ग्रंथो में से एक रामायण सिर्फ राम के बालपन, उनके मर्यादा पुरुष होने और रावण जैसे दुराचारियों के वध की कहानी नहीं है, बल्कि यह पुस्तक हमें राम के चरित्र, हनुमान के वीरता जैसे चारित्रिक कहानियों का ताना बाना बुनते हुए गणितीय गणना को भी एक नया आयाम देती है. महर्षि वाल्मीकि द्वारा रामायण त्रेता युग में घटे घटनाओं कि कहानी है जो एक आदर्श राजा, पुत्र, पत्नी , भाई और सेवक की कथा को 7 खंडो जिन्हें काण्ड कहा गया है . 500 सर्गों तथा 24000 श्लोकों में बांटने का काम करता है. वन से जब सीता का अपहरण हो जाता है और रावण बलपूर्वक सीता को लंका लेकर चले जाते हैं और राम किष्किन्धा नरेश बाली के भाई सुग्रीब से मिलते हैं और फिर दोनों कि दोस्ती होती है और पूरी बानर सेना राम के इस साथ सीता माता को ढूंढने का प्रण लेते हैं तो सुग्रीब अपने सैनिकों का परिचय और उनकी शक्ति का व्याख्यान राम के सामने करते हैं तो गणितीय संख्या का एक समूह देखने को मिलता है. किष्किन्धाकाण्ड सर्ग 38 श्लोक संख्या 27 से 33 तक के श्लोक को देखें –

एते वानरमूख्याश्च शतशश्शत्रुसूदन।   प्राप्ताश्चादाय बलिनः पृथिव्यां सर्ववानरान्।।4.38.27।।

ऋक्षाश्चावहिताश्शूरा गोलाङ्गूलाश्च राघव। कान्तारवनदुर्गाणामभिज्ञा घोरदर्शनाः।।4.38.28।।

देवगन्धर्वपुत्राश्च वानराः कामरूपिणः। स्वैस्स्वै: परिवृतास्सैन्यैर्वर्तन्ते पथि राघव।।4.38.29।।

शतैश्शतसहस्रैश्च वर्तन्ते कोटिभिश्च प्लवङ्गमाः। अयुतैश्चावृता वीराश्शङ्कुभिश्च परन्तप ।।4.38.30।।

अर्बुदैरर्बुदशतैर्मध्यैश्चान्त्यैश्च वानराः। समुद्रैश्च परार्धैश्च हरयो हरियूथपाः।।4.38.31।।         

आगमिष्यन्ति ते राजन्महेन्द्रसमविक्रमाः। मेरुमन्दरसङ्काशा विन्ध्य मेरुकृतालयाः।।4.38.32।।

इन श्लोकों में   अयुत  (10000), लक्ष्य  (100000), कोटि  (10000000), संकू  (10^12), अर्बुद  (10^15), मध्यम (10^16)  तथा अन्त्यम  (10^17) का वर्णन किया गया है.  इसी कांड में  सुग्रीब के द्वारा अपने सैनिको की शक्ति का प्रदर्शन भी देखने को मिलता है जो किष्किन्धाकाण्ड के सर्ग 39 के श्लोक  संख्या 17 से 39 में दिखता है.  यहाँ संख्या 10 के घात में आपको देखने को मिलेगी.

पद्मकेसरसङ्काशस्तरुणार्कनिभाननः।बुद्धिमान्वानरश्रेष्ठस्सर्ववानरसत्तमः।।4.39.17।।
अनेकैर्बहुसाहस्रैर्वानराणां समन्वितः। पिता हनुमतश्रशीमान्केसरी प्रत्यदृश्यत।।4.39.18।।

नलश्चापि महावीर्यस्संवृतो द्रुमवासिभिः। कोटीशतेन सम्प्राप्तस्सहस्रेण शतेन च।।4.39.36।।

ततो दधिमुखश्रीमान्कोटिभिर्दशभिर्वृतः।सम्प्राप्तोऽभिमतस्तस्य सुग्रीवस्य महात्मनः।।4.39.37।।

आवृत्य पृथिवीं सर्वां पर्वतांश्च वनानि च। यूथपा स्समनुप्राप्ता स्तेषां संख्या न विद्यते।।4.39.39।।

 

सुग्रीव के  बुलाने पर मिनटों में  लाखों करोड़ बानर, भालू  इकठ्ठा हो गये. सतबली  (10^11)गवाक्ष (10^10), धूम्र  (2 x 10^10), नील (10 ^8), नल (10^14)  , अंगद (101 x 10 ^15) तथा हनुमान  (10^10) सैनिको के साथ उपस्थित हुए.  यही नहीं 10 के गुनज का सबसे सुंदर उदाहरन भी यहीं मिलता है.   इन सैनिकों के चलने  कि शक्ति भी कमाल थी .


गज (10 योजन) , गवाक्ष (20 योजन) गवय (30 योजन), सर्भ (40 योजन), गंधामाधन (50 योजन ), मैंद (60 योजन), द्विविद (70 योजन), सुशेन (80 योजन) जामवंत (90 योजन) और अंगद (100 योजन) तक कोई भी राह पार कर सकता है.

राम की सेना के लंका में प्रवेश के बाद हनुमान रावण के सेना का परिचय प्रभु श्रीराम से करवाता है जिसे आप वाल्मीकि रामायण के युद्धकांड में तीसरे सर्ग के श्लोक संख्या 24 से 29 तक देख सकते हैं .

अयुतंरक्षसामत्रपूर्वद्वारंसमाश्रितम्‌।शूलहस्तादुराधर्षास्सर्वेखङ्गाग्रयोधिनः।। 6.3.24।।

नियुतंरक्षसामत्रदक्षिणद्वारमाश्रितम्‌। चतुरङ्गेणसैन्येनयोधास्तत्राप्यनुत्तमाः।। 6.3.25।।

प्रयुतंरक्षसामत्रपश्चिमद्वारमाश्रितम्‌ ।चर्मखङ्गधरास्सर्वेतथासर्वास्त्रकोविदाः।। 6.3.26।।

न्यर्बुदंरक्षसामत्राप्युत्तरद्वारमाश्रितम्‌ ।रथिनश्चाश्ववाहाश्चकुलपुत्त्रास्सुपूजिताः।। 6.3.27।।

शतशोऽथसहस्राणिमध्यमंस्कन्धमाश्रिताः।यातुधानादुराधर्षास्साग्रकोटिश्चरक्षसाम्‌ ।। 6.3.28।।

इन श्लोको में अयुत, नियुत , प्रयुत, अर्बुद तथा निर्बुद जैसे शब्दों का प्रयोग किया गया है जो क्रमशः 10 हजार, 1 लाख, 10 लाख,   1 करोड़ तथा 10 करोड़ को दर्शाता है, वहीं रावण द्वारा शुक को गुप्तचर बनाकर जब राम कि सेना का पता लगाने भेजा जाता है और शुक बानर का भेष बनाकर राम कि सेना का भेद पता कर वापस रावण के सामने जाता है तो राम की सेना को जो रूप प्रस्तुत करता है उनमे गणित की विशाल संख्या देखने को मिलता है .

शतं शतं  सहस्राणां कोटिमाहुर्मनीशिणः |  शतं कोटिसहस्राणां षङ्कुरित्यभिधीयते ।। 6.28.33।।

शतं पद्मसहस्राणां महापद्ममिति स्मृतम् । महापद्मसहस्रााणां शतं खर्वमिहोच्यते ।। 6.28.36 ।।

शतं समुद्रसहस्रमोध इत्यभिधीयते । शतं मोधसहस्राणां महौध इति विश्रुतः ।। 6.28.38।।

यहाँ खर्व , वृन्द (10^22), पद्म (10^32) , समुद्र (10^50) तथा महौघ (10^60) जैसी बड़ी संख्या का वर्णन रामायण में गणित के दर्शन कराता है साथ ही इसपर और अधिक शोध के लिए आमंत्रित करता है.

डॉ राजेश कुमार ठाकुर

 

                            

 

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