क्या आप जानते हैं
गणित में फ्रक्ट्ल (fractal) लैटिन भाषा के fractus शब्द से बना है जिसका अर्थ
है टुटा हुआ. गणित में फ्रक्ट्ल एक विषम या खंडित ज्यामितिक आकर है जिसे हिस्से
में विभाजित किया जा सकता है. इसकी सबसे बड़ी विशेषता यह है कि हर भग्न सम्पूर्ण कि
लघु- आकर प्रतिलिपि को दर्शाता है. 1918 में फेलिक्स हौसडोर्फ (Felix Hausdorff) ने गणित में सबसे पहले इसका प्रयोग किया
और 1975 के बाद से गणितज्ञों ने इसपर शोध करना शुरू किया. मजेदार बात यह है कि
भारतीय स्थापत्य कला में ऐसे भग्नो का प्रयोग काफी समय से होता रहा है. भग्न
युक्लिड ज्यामितिक आकृति – वर्ग, वृत्त, गोला इत्यादि से भिन्न है और यह प्रकृति के कई अनियमित आकर कि वस्तुओं
जैसे समुद्र तट और पर्वत श्रृंखलाओं का वर्णन करने में सक्षम है. भग्न के किसी
छोटे हिस्से को आवर्धन (magnify) करने पर भी यह सभी स्तरों
में समान दीखते हैं इसलिए फ्रक्ट्ल को अक्सर असीम रूप से जटिल माना जाता है..
प्रकृति में खासकर- बादल, पर्वत श्रृंखला, तटीयरेखाओं , बर्फ
के टुकड़े, विभिन्न सब्जियां – फूलगोभी, ब्रोकोली इत्यादि में
ऐसे भग्नचित्रों को देखा जा सकता है. कंदरिया महादेव मंदिर खजुराहो (निर्माण 1030)
(चित्र -1) , कर्नाटक के हम्पी शहर में स्थित विरुपक्षा मंदिर (चित्र- 2) या
मोढेरा (गुजरात) में स्थित सूर्य मंदिर (चित्र -3) में भग्नो को देखा जा सकता है. आधुनिक
गणितज्ञ के जानकारी में आने से हजारों वर्ष पूर्व बने मंदिरों में सममिति और भग्नो
का ऐसा सुंदर और सटीक प्रयोग निश्चित रूप से भारतीय गणित कि पराकाष्ठा को दर्शाता
है. हिंदू मान्यता में, संख्या को ब्रह्मांड की संरचना की अभिव्यक्ति और ब्रह्मांड
और मनुष्य के बीच परस्पर क्रिया को प्रभावित करने का एक साधन माना जाता है. इन्हीं
संख्याओं को जब आकार और रूप दिया जाता है, तो ज्यामिति रचना प्रयोग में आती है जो दर्शक के मन और
मस्तिष्क को एक प्रतीकात्मक रूप देने में सक्षम होती है और उनके अर्थों के बीच
विकसित होने वाला यह संबंध देवताओं और मनुष्य के बीच एक कड़ी के रूप में कार्य करता
है.
किसी भी मंदिर का मूल योजना रूप वास्तु पुरुष मंडल पर आधारित
होता है जो एक वर्ग है, और पृथ्वी
का प्रतिनिधित्व करता है. यह अंतहीन जीवन की पूर्णता और जीवन और मृत्यु की पूर्णता का भी
प्रतीक है. वर्ग स्पष्ट रूप, आकाशीय क्षेत्र और निरपेक्ष का प्रतीक है; दूसरी ओर वृत्त
गति – समय का प्रतिनिधित्व करता है. वर्ग और वृत्त, अपने स्वभाव से, स्थिर हैं, लेकिन
आयत नहीं है. वर्ग जब एक
वृत्त को घेरता है, तो स्थान
और समय दोनों के आयामों का प्रतिनिधित्व करता है. वृत्त से वर्ग और वर्ग से वृत्त
में परिवर्तन को यूक्लिडियन ज्यामिति के माध्यम से समझाया नहीं जा सकता है; इसे समझने के लिए ज्यामीतीय संरचना को समझना
आवश्यक है और यह काम फ्रक्ट्ल अर्थात भग्न के द्वारा समझा जा सकता है.
वास्तु पुरुष मंडल, हिंदू मंदिर योजना का ज्यामितीय आधार, भग्न पुनरावृत्तियों का परिणाम है. अर्नहेम ने अपनी पुस्तक, 'आर्ट एंड विजुअल परसेप्शन' में, वर्ग के
भीतर बलों के छिपे हुए क्षेत्रों का जटिल रूप से वर्णन किया है जहाँ वर्ग का
प्रत्येक पक्ष केंद्र की ओर बल लगाता है इस प्रकार मंडल में वर्गों की संख्या
बढ़ने से ब्रह्मांडीय ऊर्जाओं को और अधिक ठोस रूप से समाहित करने में मदद मिलती है
जहां बलों के क्षेत्र को भग्न तरीके से बढ़ाया जाता है और इसे फ्रक्ट्ल द्वारा
आसानी से समझा जा सकता है.
डॉ राजेश कुमार ठाकुर
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