क्या आप जानते हैं ?
पिछले अंक में हमने भूत संख्या की बात की थी. भूत संख्या प्रकृति और सम-सामयिक
वस्तुओं के बीच में सम्बन्ध स्थापित करता है. प्राचीन समय में संस्कृत श्लोकों के
जरिये सरल भाषा में बात लोगों तक समझ आ जाये इसलिए भूत संख्या का इस्तेमाल किया
जाता रहा. इन संख्या का इस्तेमाल बाद में कई कवियों ने भी अपने दोहों में किया
मकसद अपनी बातों को लयात्मक शैली में जन- जन तक पहुंचाना था. भूत संख्या में लिखने
की परम्परा कैसी थी इसपर चर्चा हम करेंगे पर इसके पहले जरूरी है हम एक पद से से इस
बात की शुरुआत करें -
मंदिर अरध अवधि बदि
हमसौं , हरि अहार चलि जात।
ससि-रिपु बरष , सूर-रिपु जुग बर , हर-रिपु कीन्हौ घात।
मघ पंचक लै गयौ
साँवरौ , तातैं अति अकुलात।
नखत , वेद , ग्रह
, जोरि , अर्ध
करि , सोई बनत अब खात।
सूरदास बस भई बिरह
के , कर मींजैं पछितात ॥
(सुर-सागर दशम
स्कंध)
सबसे पहले इस साधारण से
दिखने वाले पद का गणितीय व्याख्या करते हैं.
मंदिर को घर कहा जाता है और घर के आधे को ब्रज में पखवारा कहते हैं. हिंदी
में पखवाडा 15 दिन के लिए प्रयोग किया जाता है. हरि विष्णु को कहते हैं और साथ ही
शेर के लिए भी हरि शब्द का प्रयोग किया जाता है. अर्थात हरि अहार का अर्थ हुआ –
शेर का भोजन जिसका मतलब मांस से हुआ. गणितीय अर्थ भूत संख्या के हिसाब से मास
अर्थात 30 दिन से हुआ. भ्रमर गीत के इस पद में गोपियाँ कहती हैं की कृष्ण उन्हें
15 दिनों में वापस आने का वादा करके गये थे पर अब 30 दिन के बाद भी उनका कोई
अता-पता नहीं है. दूसरी पंक्ति में देखिये – ससि अर्थात चंद्रमा से है और चंद्रमा
का शत्रु दिन है क्योंकि दिन आते है चाँद अपनी महत्ता खो देती है. इसी तरह सुर रिपू का अर्थ सूर्य का शत्रु रात से
है. गोपियाँ कहती हैं कि चंद्रमा का शत्रु दिन बरस रहे हैं और सूर्य का शत्रु रात
युगों के समान लग रही है और इस वियोग में कामदेव (हरि रिपू ) ने हमला कर दिया है.
अब अंतिम पंक्ति में गोपियाँ कह रही हैं - मध पचंग = मघा नक्षत्र का पांचवा नक्षत्र =
चित्रा = चित से हैं . गोपियाँ कह रहीं हैं चित
सांवरा अपने साथ ले गया इससे बहुत बेचैनी और अकुलाहट है। अब
नीचे की पंक्ति में शब्दों पर ध्यान दीजिये - नखत = नक्षत्र = 27 , वेद = 4 तथा
ग्रह = 9 जोरी का अर्थ जोड़ना से हैं. इन्हें जोड़ने पर 27 + 4 + 9 = 40 आता है इसका
आधा करने का अर्थ है 40/2 = 20 = बीस. गोपियाँ उधो से कह रहीं हैं कि कृष्ण वियोग
में वो वन जाकर बीस – विष खाकर अपनी जीवन लीला समाप्त करना चाहती हैं.
गणितीय व्याख्या को समझने
के लिए सबसे पहले कुछ अंक और उसके संख्यांक के बारे में बात करें
अंक |
शब्द |
0 |
ख, गगन, अम्बर, नभ, व्योम, शून्य |
1 |
आदि, शशि, इंदु,
चन्द्र, सोम, शशांक, भू, भूमि, गो, बसुधा, तनु |
2 |
यम, लोचन, नेत्र, अक्षि, नयन, कर, कर्ण, ओष्ट ,
जंघा, कुटुंब |
3 |
राम, गुण, लोक, काल, त्रिनेत्र, अग्नि, पावक, हुताशन,
दहन |
4 |
वेद, श्रुति, समुद्र, सागर, वर्ण, आश्रम, युग, |
5 |
वाण, शर, पर्व, पांडव,
इन्द्रिय, |
6 |
रस, ऋतू, दर्शन, राग, अंग, काम |
7 |
नग, पर्वत, शैल, गिरी, ऋषि, मुनि, स्वर, वार, घातु, तुरग, छंद |
8 |
वसु, अहि, नाग, गज, कुंजर, सर्प, दिग्गज, हस्तिन, मातंग |
9 |
अंक, नन्द, निधि, ग्रह, रंध्र,
छिद्र, द्वार, |
10 |
दिश, दिशा, अंगुली,
पंक्ति, कंकुम, अवतार , रावणशिरम |
11 |
रूद्र. ईश्, ईश्वर,
महादेव |
भूत संख्या में 15 के लिए
तिथि, 24 के लिए गायत्री, 27 के लिए नक्षत्र, 32 के लिए दन्त
जैसे शब्दों का प्रयोग भी होता रहा है. मकसद सिर्फ इतना ही है की लोग आम बोलचाल
भाषा में गणितीय व्याख्या को समझ सके. आज हमे गणित को लोकप्रिय बनाने के लिए ऐसे
शब्दावली की बेहद जरूरत है.
डॉ राजेश कुमार ठाकुर
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