Tuesday, July 15, 2025

शुल्व सूत्र और ज्यामिति

 

क्या आप जानते हैं –

गणित अनिश्चितता को भी परिभाषित करता रहा है. यह सच है की यूनान और मिस्र को कई अद्भुत गणितीय जानकारी दी जिससे आज गणित समाज लाभान्वित हो रहा है पर इस आधार पर हम भारतीय गणितज्ञों द्वारा प्राचीन समय में दी जाने वाली जानकारी जिसे किन्ही कारणों से प्रसारित होने का मौका नहीं मिला को हम ना जानें. गणित में प्राचीन समय में जो भी खोज हुई वो सिर्फ अपनी जरूरतों को केन्द्रित करके किया गया था. खेत को नापने के लिए क्षेत्रमिति , चाँद, तारों और ग्रहों के बारे में जानकारी के लिए खगोल शास्त्र, यज्ञ की वेदी की संरचना के लिए आरंभिक ज्यामिति की मजबूती से करता आया है.

संख्याज्ञः परिमाणज्ञः समसूत्रनिरञ्छकः । समसूत्रौ भवेद्विद्वान् शुल्बवित् परिपृच्छकः ।।

शास्त्रबुद्धिविभागज्ञः परशास्त्रकुतूहलः ।शिल्पिभ्यः स्थपतिभ्यश्चाप्याददीत मतीः सदा ।।

तिर्यंगान्याश्च सर्वार्थः पाश्र्वमान्याश्च योगवित ।करणीनां विभागज्ञः नित्योद्युक्तश्च सर्वदा ।।

एक शुल्व्कार अर्थात वह व्यक्ति जो शुल्व सूत्र को जानता है , को अंकगणित और क्षेत्रमिति में पारंगत होना चाहिए, उसे खोजी प्रवृति का तथा अपने विषय पर मजबूत पकड़ होनी चाहिए साथ ही उसे अन्य विषयों को सीखने के लिए हमेशा लालायित होना चाहिए. वास्तुकला, शिल्पकला में भी जानकारी तथा उधमी होना भी उतना ही आवश्यक है.

शुल्व सूत्र में ज्यामिति रचना के कई आयाम देखने को मिलते हैं. साथ ही यज्ञ के कई रूपों के लिए अलग- अलग यज्ञ कुंड की रचना का विधान भी मौजूद है.

कुंड का नाम

आकार

यज्ञ की चाह

 छंद्श्चितम

चिड़िया के आकार का

जानवरों की अभिलाषा

a श्येनचितं

चिड़िया के आकार का

स्वर्ग की अभिलाषा

  प्रौगचितं

समद्विबाहु त्रिभुज

शत्रु का विनाश

रथ चक्र चिति

रथ के आकार का

क्षेत्र या राज्य की वृद्धि

द्रोणचिति

द्रोण या नांद के आकार का

खाध्य की बहुतायत

इसके अलावा भी अनेक तरह के यज्ञ कुंड की रचना ज्यामिति के आकार की होती थी जिसमे माप की सत्यता और सटीकता आवश्यक थी. प्रो राधाचरण गुप्त जी के अनुसार – वर्ग के आकार का कुंड सर्व सुख के लिए , योनी कुंड – पुत्र प्राप्ति के लिए , अर्धवृत – सर्वमंगल के लिए , समबाहु त्रिभुज – शत्रुओं के विनाश के लिए , कमल के फूल का यज्ञ कुंड धन-धान्य और वर्षा के लिए तथा अष्टभुज के आकार का कुंड बीमारी से बचने के लिए किया जाता था.

इतिहासकार ए. के. बेग के अनुसार - विभिन्न आकृतियों जैसे वर्ग, वृत्त, अर्ध-वृत्त, समद्विबाहु , समबाहु त्रिभुज, समचतुर्भुज, समलम्ब चतुर्भुज ,  बाज़ या कछुआ आकार और अन्य आकार  पर खींची गई वेदियों के निर्माण से विभिन्न ज्यामितीय आकृतियों का विकास हुआ, जिनमे जैसे अपरिमेय संख्याओं का विस्तारित रूप भी प्रयोग में लाने की पुष्टि होती है और यह  पाइथागोरस संबंध पाइथागोरस के जन्म से सैकड़ों वर्ष पूर्व लोगों को पता था .

समस्य द्विकरणी । प्रमाणं तृतीयेन वर्धयेत, तच्चतुर्थेनात्म चतुस्त्रिंशोनेन सविशेषतः ।

https://upload.wikimedia.org/math/4/3/4/43487318b5dfa1169cfa7801128a2213.png

मजेदार बात यह भी है कि उन्होंने न केवल द्विकर्णी (2), द्वितियाकरणी (1/2), त्रि -करणी (3), तृतीय-करणी (1/3), पंचकर्णी (5) और पंचमा करणी (1/5) जैसे तकनीकी शब्दों का विकास किया था.

पाइथागोरस प्रमेय की बात करें तो बौधायन (1.12) के अनुसार भुजा- कोटि- कर्ण न्याय का विवरण कुछ इस प्रकार श्लोक में मिलता है.

दीर्धचतुरश्रस्य अक्ष्णयारज्जु पाष्र्वमानी तिर्यंगमानी

च यत् पृथग्भूते कुरूतः तदुभयं करोति ।

बौधायन शुल्व सूत्र के अलावा कात्यायन शुल्व सूत्र में भी इस प्रमेय की झलक मिलती है. अगर बात करें मानव शुल्व- सूत्र की तो निश्चित रूप से आधुनिक पाइथागोरस प्रमेय के रूप इसी पुस्तक में दिखता है.

आयामं आयामगुणं विस्तारं विस्तारेण तु ।

समस्य वर्गमूलं यत् तत् कर्णं तद्विदो विदुः ।।

अर्थात ,

इसके अलावा पाइथागोरस त्रिक की जानकारी भी हमारे ऋषियों को थी जो उस समय के ऋषियों के गणितीय ज्ञान की परिकाष्ठा को दिखाता है.

 

 

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