1.
गणित में मॉडल का बहुत महत्व है. मॉडल की मदद से मुश्किल सा दिखने वाले गणितीय और
विज्ञान की परिकल्पना को बड़ी आसानी से समझाया जा सकता है. मॉडलिंग शब्द लैटिन शब्द
मोडेलुस (modellus) से बना है जिसका अर्थ है
वास्तविक बस्तुओं को कॉपी करना. गणित में सबसे पहला मॉडल किसने बनाया इसके बारे
में ठीक ठीक तो कहना मुश्किल है परन्तु बेबीलोनियन ने मिटटी के टुकड़े पर अलग- अलग
आकृति बनाकर गणितीय मॉडल बनाने का काम अवश्य किया. 600 ईशा पूर्व थेल्स ने किसी
बस्तु की ऊंचाई को उसके छाये से नापने के लिए एक मॉडल की रचना की थी और तो और एरेटोस्थेनेज ने यूक्लिड की ज्यामिति पुस्तक
एलिमेंट के आधार पर एक ऐसे ज्यामितिक मॉडल की संरचना की थी जिससे सूर्य – पृथ्वी
और सूर्य- चाँद के बीच की दुरी निकालना संभव था और इसी की मदद से पृथ्वी की परिधि
का पता लगाया गया. 250 इसवी में डायफेंट्स ने अपनी पुस्तक अर्थमेटिका में चर राशि
के लिए विभिन्न चिन्हों के विकास करने का दावा किया जो एक बीजगणितीय मॉडल है.
टोलेमी ने सौर- परिवार की संरचना के लिए वृत्त और दीर्घवृत्त के मॉडल की रचना कर
सूर्य, चन्द्र और अन्य ग्रहों के घूर्णन के बारे में अनुमान
निकालने का प्रयास किया. आधुनिक समय में भी गणित की विषम संरचना को समझने के लिए
मॉडल का अनुप्रयोग किया जाता है.
2.
ज्यामिति का नाम आते ही सभी के मन में दो ग्रीक विद्वान युक्लिड और पाइथागोरस का
नाम सबके दिमाग पर आता है परन्तु वैदिक समय में रस्सियों के द्वारा ज्यामितिक
आकृति बनाने की बात शुल्वसूत्र में स्पष्ट दिखता है . शुल्व- सूत्र में यूँ तो
वैदिक हवन कुंड बनाने के लिए तमाम आकृति का जिक्र है और साथ ही साथ इसमें का मान निकालने के लिए एक सूत्र का उल्लेख भी
है. पाइथागोरस से पूर्व समकोण त्रिभुज के भुजाओं के बीच में सम्बन्ध स्थापित करने
के लिए जानकारी भी और तो और आज जिसे हम पाइथागोरस त्रिक कहते हैं उसका उल्लेख भी
शुल्व-सूत्र में होना भारतीय गणित की पराकाष्ठा को दर्शाता है. इसमें (3,4,5) (5,12,13) (8,15,17) (12,35,37)
जैसे त्रिक का उल्लेख अग्नि कुंड की रचना के लिए किये जाने की जानकारी मिलती
है. अग्नि कुंड की रचना के लिए वृत्त, वर्ग, और गरुड जैसी रचना का प्रयोग उनकी ज्यामिति
ज्ञान को दर्शाता है . इसमें पृथ्वी को वृताकार और स्वर्ग को वर्ग और स्वर्ग जाने
के लिए गरुड के आकार की अग्नि कुंड की रचना का उल्लेख मिलता है और ऐसी संरचना के
लिए अलग- अलग आकृति की ईंटो का प्रयोग भी होता था जो विषमकोण समचतुर्भुज , त्रिभुज, पंचभुज और समलम्ब चतुर्भुज प्रमुख था .
3.
जयपुर के राजा जयसिंह के दरबार में एक गणितज्ञ और खगोलविद जगन्नाथ रहते थे जो एक
तेलगु ब्राह्मण थे जिन्हें संस्कृत, अरबी
और फारसी भाषा का ज्ञान था. राजा जयसिंह
ने अपने राज्य में गणित और खगोल के विकास के लिए विद्वानों का एक समूह
बनाया जिसका उत्तरदायित्व पंडित जगन्नाथ पर था. उस समय गणित और विज्ञान की तमाम
पुस्तकों को अरबी और फ़ारसी में अनुवाद किया जा चूका था जिसे पंडित जगन्नाथ ने
संस्कृत में अनुवाद करने का काम किया . इन्होने टोलोमी की पुस्तक का अरबी से
संस्कृत में अनुबाद किया और साथ ही यूक्लिड की प्रसिद्ध पुस्तक एलिमेंट का भी संस्कृत में अनुवाद किया जो रेखागणित के
नाम से मशहूर है. राजा जयसिंह द्वारा
बनाये वेधशाला इन्ही ज्यामिति सिद्धांतो पर आधारित हो सकता है .
डॉ
राजेश कुमार ठाकुर
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