क्या आप जानते हैं – 10
1.
गणित का संसार बड़ा ही रोचक है. गणना के लिए जिस गणित की शुरुआत हुई उसमे जैसे जैसे
इसके अवयव को प्रेम करने वाले लोग बढ़ते गए उन्होंने गणित को अपने तरीके से सोचने
की शुरआत की और गणित धीरे- धीरे एक नई दिशा की ओर अग्रसर हुआ. युक्लिड ने कभी
संख्याओं के समूहों में से ऐसी संख्या को अलग करने का प्रयास किया जिनके गुणनखंड
(स्वयं को छोडकर) का योग वह संख्या ही हो और इसे परिपूर्ण संख्या का नाम दिया.
जैसे 6 के गुणनखंड 1, 2, एवं 3 हैं और 6 = 1 + 2 + 3. पहले कुछ परिपूर्ण संख्या के
बारे में जान लें फिर चर्चा आगे बढ़ाएंगे.
परिपूर्ण
संख्या |
गुनाखंड
|
योग
|
6 |
1, 2, 3 |
1 + 2 + 3 = 6 |
28 |
1, 2, 4,
7, 14 |
1 + 2 +
4 + 7 + 14 = 28 |
496 |
1, 2 , 4 , 8, 16, 31, 62, 124, 248 |
1 + 2 + 4 + 8 + 16 + 31 + 62 + 124 + 248 = 496 |
8128 |
1, 2 , 4
, 8 , 16, 32, 64, 127, 254, 508, 1016, 2032, 4064 |
1 + 2 +
4 + 8 + 16 + 32 + 64 + 127 + 254 + 508 + 1016 + 2032 + 4064 = 8128 |
अब बात यूक्लिड से शुरू करते हैं. युक्लिड के
अनुसार परिपूर्ण संख्या को लिखने के लिए 2p−1(2p − 1) सूत्र का प्रयोग
किया जाना चाहिए जहाँ p एक अभाज्य संख्या है. अब इस सूत्र
में कोष्टक के अन्दर की संख्या एक त्रिभुजाकार संख्या हैं और मजेदार बात ये है की
आप परिपूर्ण संख्या को त्रिभुजाकार संख्याओं के योग के रूप में लिख सकते हैं. साथ
ही इसे लगातार विषम संख्याओं के योग के रूप में भी लिखा जा सकता है.
अब
गणितज्ञों के लिए जो प्रश्न सबसे अधिक परेशान करने वाला है वो है – क्या परिपूर्ण
संख्या अनंत है? क्या सभी परिपूर्ण संख्या सम है या
कुछ विषम भी हैं?
2.
परिपूर्ण शब्द अपने आप में पूर्णता प्रदर्शित करता है. पर क्या गणित में सबकुछ
परिपूर्ण है या कुछ गड़बड़झाला यहाँ भी है. इसके उत्तर में आप ये कह सकते हैं की
गणित में अभी भी बहुत ऐसे प्रश्न हैं जिसके उत्तर तलाशे जाने की जरूरत है और कुछेक
प्रश्न तो ऐसे पेंचिदे हैं की वो आपको भूल- भुलैया में डाल देंगे. कुछ प्रश्न तो
अपने आप में कभी सच तो कभी झूठ का आँख- मिचौली खेलते नजर आते है ऐसे प्रश्न को
पैराडॉक्स कहते हैं. तो चलिए एक पैराडॉक्स से आपको परिचय कराता हूँ.
क्या
यह संभव है कि प्रत्येक गणित के कथन को सिद्घ किया जा सके। दूसरे शब्दों में क्या
गणितीय तर्क का ऐसा संसार हो सकता है जहां सही अथवा गलत कथन सिद्घ किये जा सके.
गणित के एक महान विचारक और ज्ञाता रसेल ने
1900 इसवी में अंतर्राष्ट्रीय गणित सम्मेलन में 23 ऐसे अनसुलझे प्रश्न रखे जिनमे
से एक नाई पर पहेली थी जिसे बार्बर पैराडॉक्स कहा गया. इसे आप यूँ समझे – आप जानते
हैं की भगवान सर्वशक्तिमान है. मान लीजिये भगवान को एक ऐसा पत्थर बनाना है जो किसी
से ना उठे. अब कल्पना कीजिये की भगवान ऐसा पत्थर बना दे जो भगवान से भी नही उठे तो
उनके सर्वशक्तिमान होने पर संशय है और अगर
भगवान उसे उठा दे तो भी दिक्कत क्योंकि वो ऐसे पत्थर का निर्माण तो कर ही नहीं
सके. ऐसे अनबुझ पहेली हमारे ज्ञान कौशल और तार्किक होने में मदद करती है.
'एक
गांव में केवल एक ही नाई था। उसने कहा कि वह उन लोगों की दाढ़ी बनाता है जो स्वयं
अपनी दाढ़ी न बनाते हो।'
अब ये सोचिये की नाई की दाढ़ी कौन बनाता था?
अगर
नाई ये कहे की मैं अपनी दाढ़ी बनाता हूँ तो यह उसके खुद के कथन का विरोधाभास है
क्योंकि वो सिर्फ उनकी दाढ़ी बनाता है जो स्वयं की दाढ़ी नही बना सकता , अगर वो कहता
है मैं अपनी दाढ़ी नही बनाता तो उसे अपने कथन के हिसाब से दाढ़ी बनाने की जरूरत है.
सोचते
रहिये
डॉ
राजेश कुमार ठाकुर
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