दिसम्बर का महिना भारत में गणित माह के रूप में मनाया जाता है और देश के सभी सरकारी , गैर सरकारी संस्थानों में पुरे माह गणित को लेकर कार्यक्रम आयोजित किये जाते हैं. इसकी वजह आपको मालूम है कि 22 दिसम्बर को श्रीनिवास रामानुजन अयंगर के जन्मदिन को 2012 से राष्ट्रिय गणित दिवस के रूप में मनाया जाता है. रामानुजन ने 32 वर्ष के इस छोटे से उम्र में देश को बहुत कुछ दिया और आज भी उनके खोजे प्रमेयों, उनके शोध पत्रों पर लोग खोज करके उसका गणितीय महत्व ढूंढने का प्रयास करते हैं. इस महीने हम भी क्या आप जानते हैं कि इस श्रृंखला में रामानुजन के जीवन में घटी कुछ अनूठी घटना को आपके सम्मुख लाने का प्रयास करेंगे जिससे आप भी लाभान्वित होंगे.
तो
बात कि शुरुआत उनकी धर्मपत्नी जानकीअम्मल से करें. हर सफल पुरुष के पीछे एक महिला का हाथ होता है
और यह कुछ हद तक सही भी है. रामायण में आपने राम के संग सीता को जंगल जाते देख
सीता के त्याग कि कल्पना तो ही होगी पर यही बात लक्ष्मण कि पत्नी उर्मिला के लिए
भी सही है और उर्मिला का त्याग हर मायने में सीता से अधिक है. 14 वर्ष तक अपने पति
से दूर राजमहल की कोठरी में बिताना यह साधारण त्याग नहीं हो सकता. आप रामानुजन कि
पत्नी का त्याग उर्मिला के त्याग से तुलना कर सकते हैं. 1912 में ससुराल आने के
बाद मुश्किल से साल बीता कि रामानुजन को प्रोफेसर जी.एस हार्डी ने इंग्लैंड आने का
निमंत्रण दिया. जानकी भी उनके साथ इंग्लैंड जाना चाहती थी पर रामानुजन ने मना कर
दिया और अगले पांच साल तक वो अपनी सास -ससुर कि सेवा में गुजर गया. रामानुजन के
भारत लौटने के बाद वो अक्सर बीमार रहने लगे और अक्सर उनके शरीर में जोर का दर्द
होता जो असहनीय था ऐसे समय में जानकी उनके पुरे शरीर को गर्म पानी से सेकती और
उनके लिए रसम, चावल और जो भी रामानुजन कि पसंद थी वो पकती थी. इस असहय पीड़ा में भी
रामानुजन दिनभर तकिये पर पेट के बल लेटकर काम करते और गणित के नये नये सूत्र और
जानकारी सीट पर लिखते जिन्हें जानकी इकठ्ठा कर इंग्लैंड से लाये एक चमड़े के डब्बे
में समेट कर रख देती. रामानुजन के मृत्यु के पश्चात जानकी ने इस बक्से को हार्डी
के पास भेज दिया. 1983 में एक इंटरव्यू के दौरान जानकी ने कहा – रामानुजन ने मरने
के कुछ दिन पहले मुझसे कहा था , मेरा गणितीय काम तुम्हें भविष्य में काफी सम्मान
दिलाएगा और तुम्हारी सारी जरूरत पूरी करने में मदद करेगा.
रामानुजन
कि पत्नी रामानुजन के भारत में किसी प्रतिमा को नहीं होने को लेकर काफी दुखी थी और
उन्होंने रामानुजन के 75 वी वर्षगाँठ में इसपर अपनी दुःख को जगजाहिर किया और रिचर्ड
अस्के को इस सम्बन्ध में एक पत्र लिखा जिसके बाद सैकड़ों गणितज्ञों ने पैसे जमाकर
रामानुजन कि 6 प्रतिमा बनाकर जानकी को भेंट की. यहाँ चित्र में रामानुजन के FRS डिग्री और जानकी का अस्के को लिखा पत्र
संलग्न है
भारत
के तत्कालीन प्रधानमंत्री स्वर्गीय राजीव गाँधी ने 1984 में रामानुजन के तीनो
नोटबुक की एक प्रति जानकी को भेंट की जिसे उन्होंने सहर्ष स्वीकार किया . उनका
त्याग और रामानुजन के प्रति समर्पण जीवन भर गरीब बच्चों को पढाई के लिए मदद करके
बीता जो एक सच्ची श्रधान्जली है.
राजेश
कुमार ठाकुर
No comments:
Post a Comment